प्रतिनिधित्व और संकल्प: सुप्रसन्ना झा

सुप्रसन्ना झा

प्रतिनिधित्व

आज तुम्हारा प्रतिनिधित्व करने चल पड़ी हूं मैं
बुझे मन, आंखों में शून्यता लिए
कदम मेरे, मुझसे बार-बार सवाल
कर रहे हैं चल पाऊंगी मैं…
लेकिन,
मौन हो चल पड़ी हूं मैं
कल जहां तुम खड़े थे
आज वही कर्तव्य के पथ पर खड़ी हूं मैं
तुम्हारा प्रतिनिधित्व कर रही हूं मैं

संकल्प

जिंदगी की राहों में
आती है मुश्किल हजार
लेकिन हो संकल्पित मन
तो हो जाती बाधाएं पार
विकल्प मिलते हैं बहुत
चलते-चलते राहों में
संकल्प करो तुम फिर भी
चलने की इन राहों में
दृढ़ता हो अगर यह मन में
तुम्हें आसमान छूना है
समय बदलते देर नहीं लगती
बस निश्चयी तुझे होना है
मिलती है मंजिल उसको ही
इसी विश्वास पर चलना है