स्त्रियां और वाणी या घूंघट: सुप्रसन्ना झा

सुप्रसन्ना झा
जोधपुर

1️⃣
स्त्रियां

ये तर्कशील स्त्रियां
बेबाकी से तथ्यों को रखने वाली स्त्रियां
कुप्रथाओं पर बोलने वाली स्त्रियां
कुरीतियों को तोड़ने वाली स्त्रियां
सभ्यताओं, संस्कारों के
नये आयाम रचने वाली स्त्रियां
सच कहुँ, किसी को अच्छी नहीं लगती

2️⃣
वाणी या घूंघट

सभ्यता और संस्कृति के नाम पर
वो घूंघट वाली स्त्री
जो घूंघट की आड़ से
बिना मुखाकृति दर्शाये
बिना रुके अनवरत बोले जा रही थी
बिना सोचे कहे जा रही थी मैने देखा असर
उसके शब्द बाण से आहत
वृद्ध-वृद्धा दोनों के चेहरे पीले पड़े जा रहे थे
रात के सन्नाटे को चीरती उनकी सिसकियां
चहुंओर जैसे कुछ सवाल कर रही थी
सभ्यता के नाम पर ये घूंघट का होना जरूरी था या
बुजुर्गों के जीने के लिए सभ्य वाणी का होना?