यूँ ख़त को- रकमिश सुल्तानपुरी

महफ़िल में बार-बार बुलाने का शुक्रिया
नफ़रत से मगर साथ निभाने का शुक्रिया

अहले वफ़ा में रंज निभाने का शुक्रिया
यूँ ख़त को तार-तार जलाने का शुक्रिया

इक बार हो तो मान लें कि भूल हो गयी,
पर बार-बार दिल को दुखाने का शुक्रिया

रुसवाइयों में याद किये और सो गए,
तन्हाइयों में दर्द जगाने का शुक्रिया

हम दिल के कर्ज़दार थे मालूम था उन्हें,
लेक़िन गमों में रौब जमाने का शुक्रिया

जिसने गमों में ग़म के नये पर लगा दिए,
उस कद्रदान यार ज़माने का शुक्रिया

रकमिश तेरी वजह से ही मंजिल करीब है,
काँटों की राह मुझको दिखाने का शुक्रिया

रकमिश सुल्तानपुरी