खुद तमाशा आजकल
बनने लगा है आदमी
खुद की परछाइयों से अब
डरने लगा है आदमी
टुकड़े कर रहे हैं
हम धर्म और भाषा के
इसलिए नफरतों की भीड़ में
चलने लगा है आदमी
सारी खुशियां पास है अपने फिर भी
कस्तूरी की तलाश में
भटक रहा है आदमी
घर, परिवार, संगी, साथी सब छोड़ कर
पैसों के पीछे भाग रहा है आदमी
आज स्वार्थ की खातिर
अपनो को मार रहा है आदमी
क्या आदमखोर हो गया है आदमी
-ममता रथ
रायपुर, छत्तीसगढ़