आज आसमान में रंग
ज़्यादा नीला हो गया है
और हमारी पृथ्वी की उम्र बढ़ गयी है
साथ ही साथ हमारी सभ्यता की
उम्र भी और बढ़ गयी है
हमारी जिजीविषाएँ
समाप्त तो नहीं हुईं
पर सोच बदल गयी है
हमें क्या चाहिए और किस लिए चाहिए
कितना चाहिए, न्यून या अधिक
हम मात्रा और अनुपात नाप चुके हैं
हमें क़बीर की पंक्ति अच्छी तरह से
याद हो चुकी है कि
जितना अन्न उदर समाए
जितना कपड़ा तन ढके
उतने में संतुष्टि हो
मानव मानव की नयी परिभाषा गढ़ रहा है
सम्बल दे रहा है ख़ुद को
औरों को
चेता रहा है और बता रहा है
कि हम श्रेष्ठ क्यूँ है
इस धरती के आदि क्यूँ है
क्या हमारा मंतव्य था
जान गये हैं
भागना नियति नहीं हो सकती हमारी
एक पल सोच के सागर में गोते लगाकर जाना है हमने
ग्लोब का भूगोल हम से हैं
हम इसके रखवाले हैं
हम प्रहरी हैं, नाशक नहीं
परिवार और संस्कृति
हमारी सभ्यता की धरोहर हैं
जंगल-जंगल वालों के लिए है
और गाँव शहर के लोगों के लिए नहीं
तरक़्क़ी के रास्ते बदलने होगे हम सबको
मशीन ज़रूरत नहीं हमारी सहायक है
ये बात हमें समझनी होगी
कि विकास का आदर्श मॉडल
ग्लोब के सर्वनाश पर नहीं टिकाया जा सकता
पहले की सभ्यताएँ इसकी साक्ष्य हैं
हम समय का साक्षी बन सकते हैं
अमन ओ शांति पसंद करते हैं
पर अशांति के नहीं
पुनर्जन्म एक बार हो सकता है
बार बार नहीं
हमें ये गाँठ बाँध लेनी चाहिए
जब तक पृथ्वी के पंच तत्व सही हैं
हम सही हैं
श्रीमती अशमिंदर कौर
हिंदी शिक्षिका,
सरकारी कन्या सीनियर सेकेंडरी स्मार्ट स्कूल,
कपूरथला