यदि शब्दों के भी चेहरे होते,
भावों पर कितने पहरे होते
पढ़ लेता हर कोई इन्हें देख कर,
फिर न जख्म यूं गहरे होते
इनमें दर्द कितना होता है
हर शब्द मित्रों कितना रोता है
अब कोई जान पाता इनको,
इनमें छिपा मर्म क्या होता है
कभी खुशी में हमें हँसाते
कभी गमजद़ा हो हमें रुलाते
और कभी शिखरों पर चढ़ जाते
यदि शब्दों के चेहरे होते
कभी भैया बन हमें चिढ़ाते,
कभी बन पाती बहना को सताते
मां बाबा का आशीष दिलाते
यदि शब्दों के भी चेहरे होते
रिश्तो को फिर मजबूत बनाते
मित्रों से ये व्यवहार बढ़ाते
फिर अपनी बुद्धिमता दिखाते
यदि शब्दों के भी चेहरे होते
संभल-संभल मुख से आते
भावनाओं को समझते-समझाते
सभी के मन विचार पढ़ आते
यदि शब्दों के भी चेहरे होते
सीमा शर्मा ‘तमन्ना’
नोएडा, उत्तर प्रदेश