हम सब धरती माँ की संतान
हम सब हैं आपस में सगे भाई
फिर हमारे बीच में
किसने नफरत की आग लगाई।।
तेरा धर्म क्या मेरा धर्म क्या
जब सबको चार कंधों पर है जाना
किसकी सोच का है यह ताना-बाना
आखिर सबको एक दिन मिट्टी में है मिल जाना ।।
सदियों से तो साथ रहते आए
कितने दुश्मन को मार भगाए
चलो हम फिर से एक साथ हो जाए
दुश्मनों को उनकी औकात दिखाएं।।
हम हैं भारत माँ की शान
हमें तोड़ना नहीं है इतना आसान
वंदे मातरम का करे फिर गुणगान
मिलकर बढ़ाए देश का मान।।
कुछ भ्रम फैला कुछ गलतफहमी हुई
कुछ देर के लिए है सब नाराज़
बहुत जल्द सब एक हो जाएंगे
इस बात पर हमें है पूरा विश्वास।।
यह तो एक चक्रव्यूह है यारों
अपने-अपने सत्ता पाने का
फूट डालो और शासन करो
यही नीति है इन सत्ताधारियों का।।
नहीं डरते हैं हम उनसे
ना उन कुचक्रधारियो से
डटकर सामना करेंगे हम
हर एक व्यभीचारियों से।।
याद करो वह बचपन हमारा
जब हम लड़-झगड़ कर फिर मिल जाते
हमारी समझदारी में किसने विष घोला
अब एक दूसरे को देख दूर चले जाते।।
अगर हम ही आपस में लड़ते जाएंगे
तो आने वाली पीढ़ी को क्या मुंह दिखाएंगे
क्या वो यहीं व्यथा सहते जाएंगे
क्या वह भी इसी प्रथा को आगे बढ़ाएंगे।।
सोचे इस पर विचार करें
करें हम सब आत्मचिंतन
आपस में हमेशा एकता बनी रहे
ईश्वर से करते यही वंदन।।
-डॉ अपराजिता सुजॉय नंदी
रायपुर, छत्तीसगढ़