खामियों के भंवर में डुबकर,
नसीहत देने चला है
वो खुद को समझकर फरिश्ता,
मुकद्दर बनने चला है
चंद राहत की बदौलत उसने,
तकदीर बदलने चला है
एक बुंद आंसू बहाकर,
तस्वीर बदलने चला है
गरीब का बनाकर मजाक,
कुदरत बनने चला है।
गरीब कुटिया का छवि लेकर,
सूरत बदलने चला है
सूरत की खामियां देखकर,
आईना बदलने चला है।
किस्मत की लकीरो को,
खुद ही बदलने चला है
-जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़