तपती दोपहर नंगे पांव
जा रहे हैं अपने गाँव
वो तुम्हारे साथ राष्ट्र के निर्माण में आगे रहे
तुम महलो में सोए वो जागे रहे
जब तक रुक सके रुके वो
अब भूख के आगे बेबस झुके वो
तुम से उम्मीद थी तुम पलक झपक गए
उनकी आँख से आंसू टपक गए
ये आँसू एक दिन सत्ता को चीर देंगे
उनके पाँव के छाले तुम्हें पीर देंगे
हाथ फैलाए भी तो कब तक
क्या साँसे चल रही हैं तब तक
भूख रोटी की है रोटी ले लेंगे
एकलव्य हैं ये अंगूठा भी दे देगें
तुम्हें तो लोभ सत्ता का है शायद
तुम्हारा नज़र फेरना है जायज़
ये थिरकते आँचल भी जंजीर देंगे
उनके पाँव के छाले तुम्हें पीर देंगे
जिन अटारियों पे तुम चल रहे हो
उनके लहू की बूंदों से ही पल रहे हो
आगे भी सहारा तुम्हें लेना पड़ेगा
जवाब इन बूंदों का देना पड़ेगा
बिलखते ये बदन कभी तीर देंगे
उनके पाँव के छाले तुम्हें पीर देंगे
-ईशिका गोयल
चंडीगढ़