क्या मुड़कर देखते हो तुम भी ना
झीले-कंकर फेकते हो तुम भी ना
लोग देख रहे समझो मेरी दुश्वारी
सरेआम आँख सेकते हो तुम भी ना
तुम्हारी नज़र से खींची जाती हूँ मैं
कैसे इज़हार उडेकते हो तुम भी ना
तुम्हारी आदतों से तुमपे प्यार आए
सलोने-सुभेगते हो तुम भी ना
मुझे बुलाओ तो इशारा किया करो
ऐसे क्यों हाथ हेकते हो तुम भी ना
कड़कड़ाती ठंड में तुम धूप जैसे हो
‘उड़ता’ भले नेकते हो तुम भी ना
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल ‘उड़ता’
झज्जर, हरियाणा
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