नंदिता तनुजा
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सुनो
सच कहूँ तुमसे
कभी लगता कि
तू मुझमें बाकी कहीं
मेरी ख्वाहिशों में
ख़्याल बन दुआ की तरह..
अहसास के
सफ़र में तुम
वो साज़ बन के
ख़ामोशी के रातों में
अकेले चश्मदीद गवाह
दिल में हमराज़ की तरह…..
सांसो में बसे
इश्क़ बने तुम
क़बूल वो रात लगे
एतबार की नज़र हां,
खुदा सा दिखा वो मंजर
इबादत में चाँद की तरह…
लम्हों के साथ
इंतज़ार रहे तुम
दूर तो कभी पास
बेअंदाज़ी के तेवर से
हां पहली यादों में बिसरे
बेचैनी में हमसाज़ की तरह…
सुनो
ताबीर हो तुम
कानों में गूँजती
मीठी धुन की आवाज़
जुदाई ले के हम तरसे
आँखों में दिखे अश्क की तरह….
रही दूर नंदिता
कि ख्वाब हो तुम
शर्तों, साज़िशों से परे
मिले हम तन्हाई भी महके
तेरे ज़िस्म में समाए रूह की तरह….
हां मुझमें तुम बाकी हो कहीं..।