कभी कभी तो पूछता हूँ खुद से
कि भगवान कहां है?
क्या वो मंदिरों, मस्जिदों, मीनारों में है?
या ज़मीन आसमान या दीवारों में है?
क्या वो शहरों से दूर पहाड़ों में है?
या वो महज मेरे विचारों में है?
अगर है भगवान तो दिखाई क्यों नहीं देता?
क्या उसे दर्द दुनिया का सुनाई नहीं देता?
मैंने जब मांगी मदद कोई इंसान आया है
तो क्या इंसानो मे भगवान् समाया है?
अगर इंसानो मे भगवान है
तो इंसान कुछ बुरे क्यों हैं?
और इतनी मेहनत के बाद
मज़दूर अधूरे क्यों है?
क्या इन सबके पीछे कोई माया है?
या भगवान ने अच्छे बुरों का कोई खेल रचाया है
है अगर यह खेल तो रूल क्या है?
क्या है असली सच उल जलूल क्या है?
अंत में सब कुछ सोच के मैंने यह पाया है
भगवान ने पूरी शिद्दत से इंसान बनाया है
अच्छे-बुरे का गुण उसने खुद अपनाया है
जो समझ चुका संसार को
वो अपना कर्तव्य निभाता है
और जो अब तक है नासमझ
वो हर पल लूट मचाता है
-हितेश सहगल