वंदना सहाय
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पिंजरा खोलो
कोई रहे न बाकी
हम हैं पाखी
न माँ न बेटी
बस लगे खिलौना
हाड़-मांस की
पिसती रही
पर निखरी नहीं
हिना के जैसी
नहीं बनेगी
अब कोई कामिनी
नयी दामिनी
मेरे पैरों की
तुम बनो ताकत
जंजीर नहीं
माथे है चाँद
सृष्टि खेले आँचल
अबला कौन?
उग आए हैं
हमारे विषदंत
रौंदे जाने से
नहीं कुरेदो!
अंदर आग सोई
जल जाओगे