
सांचौर, जालोर
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:”- भारतीय संस्कृति में नारी को सदा से पूजनीय माना गया है। किंतु सामाजिक व्यवस्था में उन्हें समान अधिकार और अवसर प्राप्त होने में लंबा समय लगा। आज यह तस्वीर पूरी तरह बदल रही है। बेटियाँ अब केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि शिक्षा, विज्ञान, प्रशासन, राजनीति और यहाँ तक कि सेना में भी अपना परचम लहरा रही हैं। यह बदलाव केवल एक सामाजिक क्रांति नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक नए युग का आरंभ है।
एक समय था जब बेटियों की शिक्षा को आवश्यक नहीं समझा जाता था। किंतु अब राजकीय विद्यालयों में भी बालिकाओं की संख्या बालकों से अधिक देखने को मिल रही है। यह इस ओर स्पष्ट संकेत करता है कि चाहे ग्रामीण हो या शहरी क्षेत्र, अब अभिभावकों की सोच बदल रही है और वे अपनी बेटियों को भी समान रूप से शिक्षित करने के लिए प्रेरित हैं। हाल ही में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा घोषित परीक्षा परिणामों में बेटियों ने विज्ञान, वाणिज्य और कला- तीनों संकायों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर यह प्रमाणित कर दिया कि यदि अवसर मिले, तो वे किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं।
शिक्षा के साथ-साथ अब बेटियाँ देश की सीमाओं की सुरक्षा में भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। ऑपरेशन सिन्दूर जैसे संवेदनशील सैन्य अभियान में भारतीय सेना की लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी और भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने साहस, नेतृत्व और रणनीतिक कुशलता का परिचय देते हुए पाकिस्तान में चल रहे आतंकी अड्डों को समाप्त कर भारत का मान बढ़ाया। इन दोनों महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि अब रणभूमि में भी बेटियाँ किसी से कम नहीं हैं।
आज बेटियाँ केवल सेवा और भागीदारी तक सीमित नहीं, बल्कि नेतृत्व की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं। भारत की वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। वे देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने समाज के सबसे वंचित वर्ग से निकलकर सर्वोच्च संवैधानिक पद तक की यात्रा तय की। उनका यह सफर न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत में अब नेतृत्व की परिभाषा बदल रही है।
इतिहास के पन्नों में भी ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। भारत इस वर्ष महान प्रशासिका अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती मना रहा है। अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में न्याय, सुशासन और जनकल्याण की जो मिसाल पेश की, वह आज भी अनुकरणीय है। भारत सरकार उनके कार्यशैली को ‘सुशासन मॉडल’ के रूप में प्रस्तुत कर रही है, जो यह दिखाता है कि एक महिला प्रशासक कितना संवेदनशील, न्यायप्रिय और दूरदर्शी हो सकता है।
इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि आज की बेटियाँ केवल अपने सपनों को नहीं जी रही हैं, बल्कि वे भारत के भविष्य को भी आकार दे रही हैं। वे समाज में बदलाव की वाहक बन चुकी हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू वर्तमान की प्रेरणास्रोत हैं, तो अहिल्याबाई होलकर इतिहास की अमर धरोहर। ऐसे में आवश्यक है कि बेटियों को शिक्षा, सुरक्षा, सम्मान और समान अवसर मिलें, ताकि वे अपने भीतर की संभावनाओं को पूर्ण रूप से विकसित कर सकें और भारत को एक सशक्त, समावेशी और गौरवपूर्ण राष्ट्र के रूप में स्थापित कर सकें।