कम होते संवाद, सिमटती संवेदनाएं: सुजाता प्रसाद

सुजाता प्रसाद
स्वतंत्रत रचनाकार,
शिक्षिका सनराइज एकेडमी,
नई दिल्ली, भारत

डिजिटल दुनिया तकनीक का बेहतरीन उपहार है। डिजिटल क्रांति के युग में संसार के लिए यह एक ऐसा वरदान है, जिसने हमारे जीवन को ऑनलाइन होने की सुविधा उपलब्ध करवाई है। इसके उपयोग ने मानवीय संबंधों को व्यापक रूप से बदल दिया है। इसकी उपलब्धता से हमारे बीच होने वाले पारंपरिक संवाद, आपसी संबंधों को बनाए रखने का व्यवहार और मिलने जुलने के तरीकों में बड़ा बदलाव आया है। दूरी के बावजूद कनेक्टिविटी, ऐसा हो पाना कुछ दशक पहले महज़ काल्पनिक बात थी। पर अब व्यस्ततम दिनचर्या एवं भौगोलिक दूरी के बावजूद आपस में जुड़े रहना संभव हुआ है। सच ग्लोबलाइजेशन के इस चरण ने हमारे बीच की निकटता को नया आयाम दिया है। जहां डिजिटल दुनिया परिजनों और मित्रों से संपर्क एवं संवाद का अनोखा अवसर देता है वहीं यह अनूठी चुनौतियां भी ला खड़ी करता है। 

डिजिटल संचार के माध्यम सुविधाजनक तो हैं पर इनका लगातार उपयोग करते रहने के बाद कई अन्य साइड एफेक्ट्स जैसे निजता पर प्रहार, विचलन, उदासी, तनाव, अवसाद आदि के साथ साथ ये माध्यम सतही संवाद को भी प्रोत्साहित करते हैं। ऐसा लगता है जैसे आहिस्ता-आहिस्ता हम संवेदनाओं को खोते चले जा रहे हैं। निःसंदेह कहीं ना कहीं इसने हमें वास्तविकता से भी दूर कर दिया है, जिस वजह से हमारे अपनों के बीच होने वाले संवाद कम होने लगे हैं। साथ ही यह भी चिंतनीय है कि कैसे हमारे बीच की जुड़ी संवेदनाएं सिमटती हुई निष्ठुर हुई जा रही हैं। स्थिति बताती है कि डिजिटल दुनिया संचार माध्यम के लिए बेहद सुविधाजनक और सुखद है। पर यह आभासी माध्यम हमारे वास्तविक मिलने जुलने की प्रक्रिया एवं हमारे बीच होने वाले संवाद को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता, यह बात बिल्कुल सही है। 

आज जब यह दुनिया सौ फीसदी ऑनलाइन हो गई है। तब क्षणिक खुशी के लिए हम डिजिटल रिश्तों के पीछे इस कदर भागते फिरते हैं कि हमें पता ही नहीं चलता है कि किसी अपने को भी हमारे साथ की ज़रूरत है। इस ऑनलाइन स्कैम ने हमारे खास रिश्तों को ऑफलाइन करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। ना सिर्फ संवाद बल्कि संवेदनाएं भी अब डिजिटल प्लेटफार्म तक ही सिमट कर रह गई हैं। वास्तव में ऑनलाइन दुनिया ने अपने यूजर्स को आत्मकेंद्रित कर दिया है। वे अपने आसपास के लोगों के दर्द, उनकी उदासी, उनकी खुशी, उनकी जरूरतें आदि से बेखबर होते जा रहे हैं। वे बस ‘ऑनलाइन उपलब्ध’ हैं, लेकिन वास्तविकता में भावनात्मक रूप से अनुपलब्ध होते जा रहे हैं। हमारे लिए यह एक चेतावनी के समान है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो इंसान संवेदनाओं से पूरी तरह दूर हो जाएगा। फिर इस शून्यता को भरने तनाव और उदासी दौड़ी चली आएगी और समाज का बहुत बड़ा हिस्सा डिप्रेशन की भेंट चढ़ जाएगा।

सच मानें तो सोशल मीडिया सिर्फ हमारे मध्य संचार का  एक माध्यम भर है, हमारा जीवन नहीं। दरअसल संवाद को अनुभव में उतारने और संवेदनाओं को महसूस करने की आवश्यकता है और उनसे मिली यादों को संजोने और ताउम्र जीवंत बनाए रखने के लिए वास्तविक दुनिया में रहना एक अनिवार्य शर्त है। इसलिए डिजिटल दुनिया के फायदे पाने के लिए जरुरत है सतर्क प्रबंधन की और इसे एक पूरक भूमिका में स्वीकार करने की।