महल- अनिल कुमार मिश्र

अट्टालिकाएँ यूं पडी रह जाएँगी
खंभे उसमे सब गड़े रह जाएँगे
बेईमानी हर पल तुझे तड़पाएगी
ना चैन आएगा तुम्हें ना नींद आएगी

तेरे महल के पाषाण भी शिक्षक बने हैं
‘संगमरमर’ भी सिखला रहे हैं, संग मर
तू जी सका ना संग तो फिर क्या मरेगा संग
नफरत ही कर ले तू सबसे आज जी भर

दीवार तेरे काम ना कुछ आएँगे
धरे रह जाएँगे भाई धरे रह जाएँगे
रिश्तों के खाते में जमा कर प्रेम को
हम याद आएँगे तुझे बस याद आएँगे

छत्तीस खंभों का महल मजबूत होता है
रिश्ते रुलाते हैं जहाँ दुःख घोर होता है
ढहते जहाँ संवेदना और प्रेम प्रतिपल
महल होता है वह बस महल होता है

-अनिल कुमार मिश्र
हज़ारीबाग़, झारखंड