समरस साहित्य संस्था एवं जकासा की काव्य-गोष्ठी आयोजित, कवियों ने दी शानदार प्रस्तुति

अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय साहित्य सृजन संस्थान, जयपुर इकाई एवं जयपुर काव्य साधक (जकासा) की चतुर्थ मासिक काव्य गोष्ठी दुर्गापुरा, जयपुर स्थित काव्य साधक स्टूडियो में वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती कुसुम शर्मा की अध्यक्षता में अमित तिवारी की सरस्वती वन्दना- ‘भव-तारिणि करुणामयी दुख दर्द से तू तारदे माँ शारदे’ के गीत के साथ प्रारम्भ हुई। आपने सैनिकों की ओर से माँ भारती को श्रद्धा सुमन अर्पित किया- ‘माथे तेरी धूलि लगाऊँ, शीश काट निज पुष्प चढ़ाऊँ, वन्दन तुझको हिंदुस्तान’ सुनाकर भाव विभोर कर दिया।

दिनेश दुबे ने ‘गजब चलन इतिहास ही मोहब्बत की नुमाइश का, शहंशाह ने मकबरे को ही संगमरमर से तराश कर प्रेम की नुमाइश बना दिया’ रचना सुनाई तो डॉ एनएल शर्मा ने ईद के मौके पर ‘चाँद से ही चाँदनी श्रृंगार करती ईद का’, गजल सुनाकर दाद पायी। वैद्य भगवान सहाय पारीक ने ‘इस काया का मान समझना जीना है, श्वास श्वास का मान समझना जीना है’, रचना सुनाई। राष्ट्रीय संगम के प्रदेश महामंत्री किशोर पारीक ‘किशोर’ ने विप्र चेतना के कुल नायक, पराक्रमी परशुराम जयंती पर अपनी लोकप्रिय ओज रचना ‘हे क्रांति दूत अग्नि दूत इस ब्राह्मण का अभिनंदन है’ सुनाकर जोश भरा।

संस्कृत एवं हिंदी के वरिष्ठ कवि रितेश शर्मा ने ‘माँ वर्ण नहीं, माँ शब्द नहीं, माँ प्रणवाक्षर का बीज मंत्र है, माँ में सागर से गहराई, माँ में हिम पर्वत सी ऊंचाई है’ हृदयस्पर्शी रचना सुनाकर आत्म विभोर कर दिया। विनय कुमार ‘अंकुश’ ने ‘पड़ै तावड़े जेष्ठ को, पाणी हालै पेट को, खड़ो संतरी पाणी माँगे चांदपोल रा गेट को’ सुनाकर हास्य बिखेरा। आपने तार सप्तक जिंदगी के गीत से जीवन के बालपन से वृद्धावस्था तक का बोध कराया। श्रीमती रजजेश्वरी जोशी जी ने हास्य लिखती हूँ न परिहास लिखती हूँ, सिर्फ मन के भावों का अहसास लिखती हूँ और रिश्तों की बनाई पर बुनती हूँ रिश्तों को प्यार से और अहसास को खून से बुनती हूँ, रचना सुनाई।

इस अवसर पर बालकवि मेहुल पारीक ने ‘पर्वत कहता शीश उठाकर तुम भी ऊँचे बन जाओ’ रचना सुनाकर मन मोह लिया। वरिष्ठ कवि लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ने ‘नई फसल की खुशी मनाये, बैसाखी त्योहार में, अन्न उगाकर कृषक खेत मे, दे जग को उपहार में’ और भगवान परशुराम पर ‘त्रेता युग से द्वापर युग तक, जिसकी गाथा सुनी महान, नहीं दूसरा परशु राम सा, धरती पर कोई बलवान’ गीत रचनाए सुनाई। श्रीमती कुसुम शर्मा ने संस्कृत, हिन्दी और राजस्थानी में रचनाएं सुनाकर अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी। अंत में साहित्य समरस संस्थान, जयपुर इकाई अध्यक्ष श्री लड़ीवाला ने सभी को उत्कृष्ट काव्य-पाठ कर गोष्ठी को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया।