किसे पता था कि टमाटर ऐसी दौड़ लगायेगा, इसके पीछे भागेंगे सब पर ये हाथ न आयेगा

राष्ट्रीय समरस साहित्य संस्थान एवं जयपुर काव्य साधक की सातवीं संयुक काव्य गोष्ठी आयोजित

राष्ट्रीय समरस साहित्य संस्थान एवं जयपुर काव्य साधक की सातवीं संयुक काव्य गोष्ठी वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शिवदत्त शर्मा जी के मुख्य आतिथ्य एवं समरस संस्थान के अध्यक्ष वरिष्ठ गीतकार लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला की अध्यक्षता में काव्य साधक स्टूडियो में सम्पन्न हुई। वैद्य भगवान सहाय पारीक की ढूँढाड़ी में सरस्वती वंदना के साथ प्रारम्भ गोष्ठी में रितेश शर्मा जी ने- “कलम की सादगी मेरी, कलम मेरी कयामत है। पिता का हाथ शीश पर, तन माँ की हिफाजत है।” सुनाकर अछी शुरूआठ की तो वरिष्ठ कवि सुभाष चन्द्र शर्मा ने “बरसात की बातों में, में भीगी भीगी रातों में, पूनम की चांदनी निखर निखर आई है” जैसा श्रृंगार रस में भीगा मधुर गीत सुनाकर माहौल को रसमय कर दिया।

वहीं कवि गोपकुमार मिश्र ने श्रृंगार रस में ही गीतिका “मैं कली ऐसी खिली खिल खिलखिलाना आ गया। नैन सर प्रतिपक्ष को जलवा दिखाना आ गया और राधिका छंद मे राम जन्म रचना सुनाकर तालिया बटोरी- बीत जाता पल सखी जो लौटकर आता नही, सुनाकर मंत्र मुग्ध किया। श्रीमती रंजिता जोशी ने- “कहना था तुम्हारे अधरों को, वह तुम्हारे नैन कह गये। सुनना था जो तुम्हारें कानों से, वह तुम्हारी खामोशी सुना गई।” सुनाकर दाद पायी। 

अरुण ठाकर ने- “कभी मदारी बन किरदार निभाया हमने, कभी जमुरा बनकर दुनिया को हँसाया मैंने। सुना हँसी का माहौल बनाया। तो श्रीमती सावित्री रायजादा नसुंदर सरस भावों के दोहे व छन्दों में रचनाए पढ़ी। जकासा संस्थापक वरिष्ठ कवि किशोर पारीक ‘किशोर’ ने गुरु पूर्णिमा, नाग पंचमी, विवेकानंद पर भावपुर्ण रचनाए के साथ ही गृहिणी पर रचना पढ़ते कहा कि गृहिणी से ही होती है ग्रहशांति, पूरा घर उनका ऋणी होता है। अशोक दीप ने “सुदामा आ गया सुपावन द्वारिका नगरी और किसी के नाम से पहले सदा जय हिंद लिखता हूँ जैसी राष्ट्रभक्ति की रचना सुनाई।

वरिष्ठ कवि राव शिवराजपाल सिंह ने- “उलट बासी इस जग की देखो, चाँद को कब आहे भरते देखा और सामयिक रचना “टमाटर पीछे पड़ा हूं अरहर दाल के, है कोई माजी का लाल जो टमाटर लाल खाये और “दिल के दर्द की दवा आज तक भी न खोज पाया है कोई” सार्थक रचनाएं सुनाई।

वरिष्ठ कवि वरुण चतुर्वेदी ने “किसे पता था कि टमाटर ऐसी दौड़ लगायेगा, इसके पीछे भागेंगे सब, पर ये हाथ न आयेगा। मार चुका है डेढ़ शतक ये, दोहरा शतक लगाएगा। आपने लहुँ की बरसात सियासत में और केजरीवाल जैसे नेताओं पर पैरोडी सुनाकर खूब तालियाँ बटोरी। मुख्य अतिथि डॉ शिवदत्त शर्मा ने श्रंगारित भावों का गीत रूप तुम्हारा शरद चन्द्रमा नयन मीन चपलाई है। जुल्फ तुम्हारी स्याह भ्रमर सी नागिन सी लहराई है और विरह गीत- दिल जलाते थे जो मेरा, खत तुम्हारें जला दिये। सूखे फूल किताबों में थे जो, हवा में मैंने उड़ा दिये। सुनाकर माहौल को गरमा दिया। 

अन्त में समरस संस्थान जयपुर इकाई के अध्यक्ष लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ने सरस गीत- “प्रातः वन्दन करके पूजा, करो ईष्ट भगवान की। सुना रहें है सन्त पुरोधा, महिमा कथा पुराण की।। मात पिता और गुरु सदा ही, रक्षा करते प्राण की। सुनाकर भक्ति रस से सरोबार कर दिया। गोष्ठी का संचालन समरस संस्थान के उपाध्यक्ष राव शिवराजपाल सिंह ने किया। अंत में राष्ट्रकवि वरुण चतुर्वेदी ने धन्यवाद ज्ञापित कर आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।