लिंग समानता- ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकार: डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल
शिक्षाविद एवं साहित्यकार
जयपुर, राजस्थान

वर्तमान आधुनिक समाज में लैंगिक समानता एक बहुत ही गंभीर मुद्दा रहा है। यह महिलाओं, लड़कियों और पुरुषों के मध्य भेद भाव को दर्शाता है। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो आज भी महिला की समाज में स्थिति दयनीय और सोचनीय है। आज भी समाज उसे अपने अधिकारों के लिए स्वतंत्र नही रखता। आज भी वह पुरुषत्व की बेड़ियों में जकड़ी हुई है। जब कि वह देश की पुरुष वर्ग से अधिक जिम्मेदार नागरिक है। घर, बाहर, कार्यस्थल, समाज, बच्चे आदि के लिए महिला ही एक संतुलित तराजू है, जो अपनी जिम्मेदारियों पर खरी उतरती है। उसके बावजूद भी महिला प्रजाति शोषण और अत्याचार की शिकार है। जिम्मेदारियों का बोझ उठाते वक्त वह ये भी भूल जाती है कि उसका भी कोई वजूद है।

आज भी बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी क्षमताओं को नही पहचान पाती हैं। इसकी वजह हमारा समाज है। जहां उनको ऐसी ही परवरिश और संस्कार दिए जाते हैं, कि तुम एक लड़की जाति हो। तुम्हारी चुप्पी साधना ही तुमको संस्कारवान बनाती है। चाहे कितने भी हों जुल्म और अत्याचार तुम पर, लेकिन तुम्हें आंख उठाकर भी नही देखना है। तुम्हारा जन्म इस धरा पर ये सब सहने के लिए ही हुआ है। पुरुषप्रधान समाज में पुरुष का वर्चस्व होना स्वाभाविक है।

पुरुष और स्त्री के बारे में सभी इतने जागरूक हैं तो थर्ड जेंडर के बारे में भी गहनता से सोचने का विषय है। स्त्री योनि से जन्म लेने वाली प्रजाति ट्रांसजेंडर भी है। जिसका लैंगिक परिचय देने की आवश्यकता नहीं। यह ईश्वर का वरदान है, जो इस पृथ्वी पर थर्ड जेंडर के रूप में जन्म लेती है। ट्रांसजेंडर भी ईश्वर की रचना है। उनके भी दिल है। आत्मा है। भावनाएं हैं। उमंगे हैं। हमारी और उनकी जरूरतें एक जैसी ही हैं। सदियों से ट्रांसजेंडर समुदाय भारतीय समाज का हिस्सा रहा है। प्रारंभिक वैदिक और पौराणिक साहित्य का अभिन्न अंग रहा है। वैदिक संस्कृति में भी तीन वर्गों को ही मान्यता दी गई है। प्राचीन हिंदू विधि, चिकित्सा विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान और भाषाशास्त्र में भी तीसरे लिंग का वर्णन है।

यह द्विआधारी लिंग के साथ संरेखित होता है। ये वे लोग होते हैं जो पुरुष या महिला शारीरिक संरचना के साथ पैदा होते हैं लेकिन वे अपने शरीर की संरचना से अलग महसूस करते हैं क्योंकि उनकी लिंग अभिव्यक्ति, पहचान या व्यवहार उनके जन्म के लिंग से भिन्न होता है। ट्रांसजेंडर लोग अपनी लिंग पहचान को कई तरीकों से व्यक्त करने का प्रयास करते हैं। क्योंकि कुछ लोग अपने व्यवहार, पोशाक या व्यवहार का उपयोग उस लिंग की तरह रहने के लिए करते हैं जो उन्हें लगता है कि उनके लिए क्या सही है।

सोचिए एक बार, उनके अंतर्मन पर क्या गुजरती होगी, जिन्हें पारंपरिक रूप से समाज द्वारा अलग हाशिए में रख दिया जाता है। उनके साथ नियमित होने वाले सामाजिक भेदभाव, असमान व्यवहार, प्रताड़ना, हिंसा से होने वाली पीड़ा उनको संवेदनशील बनाती है। उनका ट्रांसजेंडर और ट्रांससेक्सुअल होना साधारण मानव के गुणसूत्र असमान्य वितरण का ही परिणाम है। जिससे उनको समाज में हीन भावना से देखा जाता है। बात बात पर कोसा जाता है। मैं एक ऐसे पाठक को बताना चाहूंगी, जो ट्रांसजेंडर नहीं है। वो एक ऐसी दुनिया की कल्पना करे, जिसमे आपके अस्तित्व का मूल अज्ञात हो…. परिवार के अंदर, जब आप स्कूल में कदम रखते हैं, जब आप रोजगार की तलाश करते हैं, या जब आपको स्वास्थ्य एवं आवास जैसी सामाजिक सेवाओं की आवश्यकता होती है और आपके पास उन संस्थानों और सेवाओं तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं रहता। तब आप मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से उसी समाज के हाथ शिकार होते हैं। तो ट्रांस व्यक्तियों की जीवनचर्या कैसी होती होगी। उनका मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास कैसे होता होगा।

ऐसा कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा जहां उनको सामाजिक भेदभाव , अलगाव , हिंसात्मक परिदृश्य देखने को ना मिलें। एक हिजड़ा ने आप बीती घटना का परिदृश्य सबके सामने रखा। घर के अंदर और बाहर यौन उत्पीडन, छेड़छाड़ और यौन शौषण का सामना करना पड़ा। एक अन्य किन्नर की आत्म कहानी भी कुछ ऐसी ही है। एक मां जो उसे जन्म देती है और जब उसे पता चलता है कि किन्नर को जन्म दिया है तो वही मां उसे मारती पीटती है। घोर अन्याय हो रहा है हमारे समाज में। एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति और ट्रांस व्यक्ति की समाज में समान स्थिति है। उससे जीने के अधिकार छीन लिए जाते हैं। जब ईश्वर की व्यक्ति में कोई कमी देकर भेजता है तो अन्य अदभुत गुण और कला से संपूर्ण होने के लिए ज्ञान, तर्क, चिंतन, बुद्धि का भरपूर विकास भी करता है। इसी तरह ट्रांस व्यक्ति में लिंग सामान्यता भले ही है लेकिन वो समाज के लिए शिव की शक्ति हैं। वरदान हैं। दुआओं का समंदर हैं। अतः इनको समाज में उचित सुविधाएं और सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।

ट्रांसजेंडर लोगों को आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के मामले में बहुत भेदभाव का सामना करना पड़ा है। उनके साथ किया गया भेदभाव सामाजिक कलंक और अलगाव से उत्पन्न होता है। उनमें अनेक समस्याएं जैसे भय, लिंग डिस्पोरिया, शर्म, संकोच, अवसाद, आत्महत्या प्रवृति, जन्म लेती हैं। इन सबसे निपटने के लिए महत्वपूर्ण कदम की अत्यंत आवश्यकता है। ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें भेदभाव से बचाने के लिए, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 में भेदभाव के खिलाफ निषेध शामिल है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण रूप से
रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र एवं अनेक कल्याणकारी योजनाएं शामिल की गई हैं।

अदालत और राज्य सरकार ने भी इनको रोजगार हेतु आरक्षण सुविधा देने का निर्णय लिया गया है। उनको समाज का हिस्सा मानने तथा अछूत न समझने हेतु जन जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। राज्य ट्रांसजेंडर कल्याण मंडल, राज्य उभयलिंगी कल्याण बोर्ड गठन हेतु क्रियान्वयन करना महत्वपूर्ण कदम होगा। ट्रांसजेंडर समुदाय के उत्थान हेतु महिला दिवस की तरह ही सरकार को ट्रांसजेंडर दिवस मनाने की घोषणा करनी चाहिए। पाठ्यक्रम में ट्रांसजेंडर समुदाय के बारे में जानकारी भी शामिल करनी चाहिए। कला, साहित्य, संस्कृति एवं शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु प्रोत्साहन पुरस्कार देना चाहिए।

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