गजल का एक नया स्वरूप चारु: राव शिवराज पाल सिंह

राव शिवराज पाल सिंह
जयपुर/इनायती, राजस्थान, भारत

आज से लगभग 1500 साल पहले ग़ज़ल का जन्म फारसी भाषा में हुआ और वहाँ की फ़ारसी भाषा में गजल को कहा गया।

प्रारंभ में शायद राजाओं की तारीफ मे कशीदे ही पढ़े जाते होंगे और शायर अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए शासकों की सच्ची झूठी तारीफ़ करता और राजाओं को वही सुनाता था, जिससे वो खुश होते थे और राजा खुश होते थे शराब, कबाब और शबाब के कसीदे सुन कर, उसमें भी सबसे अधिक विलासी राजा औरतों के ज़िक्र से खुश होते थे तो शायरी में औरतॊं और शराब का ज़िक्र ही ग़ज़लों में होने लगा। कुछ ही समय में ग़ज़ल का मतलब ही औरतों के बारे मे कुछ कहने से हो गया, जो उसकी सुंदरता की तारीफ, प्रणय निवेदन, वफा और बेवफाई ही इसके मुख्य घटक बन गए।

मुस्लिम शासक जब भारतवर्ष में आक्रांता बन कर आए और यही रुक गए तो अपने साथ फ़ारसी भाषा और संस्कृति भी लाए और उन्होने अपने राज में फारसी भाषा मुख्य कर दी। जब फारसी दरबारी भाषा बनी तो शासकों को खुश करने यहाँ के कवियों ने भी इसे सीखा और ग़ज़ल को अपनाया। यही पर इसका बहर शास्त्र बना जो फारसी में था और अरूज कहा जाता था, यहां भी मुख्य रूप से ईरानी स्वरूप में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।

12वीं शताब्दी के अन्त में दिल्ली में ख़ुसरो (1253-1325), जो फारसी और दिल्ली के आसपास बोली जाने वाली आम बोली के विद्वान थे ने फ़ारसी और हिंदी मे अनूठे प्रयोग किए, इस तरह भारतीय उपमहद्वीप में गजल का पदार्पण हुआ। अगले लगभग छः सौ वर्षों तक भी गजल की विषय वस्तु मुख्य रूप से नारी सौंदर्य और प्रेम विरह ही बना रहा। अट्ठारहवीं शती के उत्तरार्ध ओर उन्नीसवीं शताब्दी में गजल की विषय वस्तु में थोड़ा परिवर्तन आने लगा और बेकसी, लाचारी, गरीबी और अत्याचार भी इसकी विषय वस्तु बनने लगे, लेकिन बहुत कम प्रतिशत में, बीसवीं शताब्दी तक भी मुख्य विषय तो तब भी नारी ही रही। भारत वर्ष में हिंदी, उर्दू और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी गजल पर बहुत प्रयोग हुए लेकिन आमूलचूल बदलाव नहीं आया।

संस्कृत से निकली हिंदी की सहोदरा नेपाली भाषा ने भी गजल को अपनाया लेकिन गजल के केंद्र विषयवस्तु में वहां भी नारी ही रही। समय के परिवर्तन और आधुनिक तकनीक के चलते इक्कीसवीं शताब्दी में भारत नेपाल के साहित्य प्रेमियों और रचना धर्मियों में संपर्क बढ़ा, यही वह समय था जब नेपाल में वहां के एक साहित्यकार डॉ देवी पंथी का नेपाली साहित्य आकाश पर एक देदीप्यमान तारे की तरह उदय हुआ। अन्य अनेक स्वधन्यनाम नेपाली हस्ताक्षरों को साथ लेकर इन्होंने एक अलख जगाई और नेपाल में साहित्यकारों की एक बाढ़ ही आ गई।

इसी दौरान डॉ पंथी ने एक नई विधा के रूप में नया प्रयोग किया और इसे संस्कृत का एक शब्द चारु से विभूषित किया। चारु का संस्कृत में अर्थ होता है सुंदर, अत्यंत मनमोहक। इस तरह हम देखते हैं कि नेपाल में चारु का जन्म हुए भी बहुत दिन नहीं हुए हैं लेकिन इसके प्रणेता डॉ देवी पंथी के प्रयासों से नेपाली कवियों और गजल कारों के बीच यह बहुत तेजी से लोकप्रिय हो गई है। आज तो हालत यह है कि अभी हाल ही में जब मैं विराटनगर नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में भाग लेने गया तो वहां पर चारु लिखने वाले अनेक चारु कार और चारु कारा से मुलाकात हुई और उनकी रचना संसार से मै न केवल परिचित हुआ बल्कि प्रभावित भी हुआ।

चारु क्या है?
जैसा कि ऊपर लिखा गया गजल का विषय जहां गत 1500 वर्षों से नारी, उसका सौंदर्य और प्रेम रहा है वही चारू पुरुष केंद्रित विधा है जिसमें नारी पुरुष के बारे में अपने मनोभाव लेती है। जहां गजल में पुरुष नारी के सौंदर्य श्रृंगार प्रेम संयोग वियोग वफा और बेवफाई का वर्णन करता है वही चारू में यही सब प्रेम निवेदन, श्रृंगार में संयोग वियोग आदि पुरुष के लिए स्त्री द्वारा वर्णित होता है तो इसे डॉक्टर पंथी ने इसे चारु का नाम दिया। गजल में जहां बहर अनिवार्य है वहीं चारु में ऐसा कोई बंधन नहीं है, ऐच्छिक है।

राग
चारु का शाब्दिक अर्थ है आसक्ति, स्त्री द्वारा पुरुष के प्रति प्रणय निवेदन आदि से संबंधित है वही राग प्रेमी के प्रति प्रेमिका के रिश्तों की भावाभिव्यक्ति से हटकर भाई बहन, माता पुत्र गुरु शिष्य और ईश्वर आदि विषयों पर पवित्र भावों को लेकर की रचनाएं राग में आती हैं।

विराग
विराग का अर्थ राग से बिल्कुल उल्टा है, अर्थात सांसारिक विषयों, उदासीनता, व्यंग्य और कलह आदि विषयों पर लिखी गई रचना को डॉ पंथी ने विराग की श्रेणी में रखा।

राग विराग
ऐसी गजल जिसे चारु श्रेणी में माना गया है लेकिन जिसका हर शेर एक अपना अलग अर्थ लिए हुए हो , शेर के विषय वस्तु मिश्रित हो उसे उन्होंने राग विराग का नाम दिया।

आज डॉ देवी पंथी और भारत में उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले डॉ दीपक गोस्वामी, डॉ विजय पंडित और मिलन सिंह मधुर के प्रयासों से भारत के ग़ज़लकारों में भी चारु बहुत पसंद की जा रही है, और इसमें अनेक हिंदी भाषी रचनाकार अपना योगदान दे रहे हैं। चारु बहुत कम समय में विश्व के प्राय सभी देशों में लोकप्रिय बन गया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि नेपाल भारत साहित्य जगत के रचनाकार एक दूसरे के संपर्क में आकर दोनों सहोदर भाषाओं में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे है।