समाज निर्माण में शिक्षकों की भूमिका: सुजाता प्रसाद

सुजाता प्रसाद
स्वतंत्र रचनाकार
शिक्षिका, सनराइज एकेडमी,
नई दिल्ली, भारत
ईमेल: [email protected]

“माँ व्यक्ति को जन्म देती है, शिक्षक व्यक्तित्व को।”

शिक्षा ही जीवन का अर्थ है और शिक्षित समाज एक वरदान। जिनसे हमें शिक्षा मिलती है वे हमारे शिक्षक कहलाते हैं। शिक्षक हमारे जीवन की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए हमारे शिक्षक राष्ट्र के वास्तविक निर्माता कहे जाते हैं। अज्ञान रूपी अन्धकार से ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर ले जाने वाले हमारे गुरु ही होते हैं। जीवन में माता-पिता पहले शिक्षक होते हैं, जो जीवन पर्यन्त बने रहते हैं। उसके बाद विद्यालय के शिक्षक होते हैं, जिनसे हमें शिक्षा मिलती है। साथ ही जीवन के हर मोड़ पर हमें कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। इस तरह जिन जिन से हमें कोई सीख मिलती रहती है वे सभी हमारे शिक्षक ही हुए।

हम यह जानते हैं कि जो ज्ञान के पुस्तकालय हों, जिनके पास हमारे प्रश्न का हल हो, हमारी जिज्ञासा का समाधान हो वास्तव में वही शिक्षक होते हैं। अपने छात्रों को समझाने के साथ साथ तार्किक बना देने वाले शिक्षक सर्वोत्तम शिक्षक होते हैं। किसी भी इंसान को उसकी जिन्दगी में सफल होने के लिए उसके शिक्षक का बड़ा योगदान होता है। शिक्षक वो होता है जो हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। हमें सही क्या है और गलत क्या है यह परख करवाता है। एक शिक्षक ही बच्चों में देश प्रेम की भावना भरता है। बच्चे अपने शिक्षकों से ही अनुशासित रहना सीखते हैं। तभी तो शिक्षक “राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली” कहलाते हैं।

बुनियादी तौर पर मैं समझती हूं शिक्षक में छात्रों को जागरूक करने की योग्यता जरुर होनी चाहिए। उन्हें एक मार्गदर्शक के रूप में छात्रों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखना चाहिए। छात्रों की क्षमता को पहचानकर उन्हें शिक्षित करने की चुनौती स्वीकार करना चाहिए। शिक्षक को न सिर्फ सिखाना चाहिए बल्कि नित प्रति सीखना भी चाहिए। शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका एक विद्यार्थी बने रहने में ही है। क्योंकि इस तरह उनके सीखने की प्रवृत्ति से उनके ज्ञान का मूल्यवान प्रसार होता है। विद्यार्थी में उपस्थित अवगुणों का परिमार्जन करना और अच्छे गुणों का यथोचित बीजारोपण करना शिक्षकों का परम कर्तव्य होना चाहिए। शिक्षा के साथ साथ मानवीय गुणों और नैतिक मूल्यों को भी स्थापित करने की प्रतिबद्धता होनी चाहिए क्योंकि गुरु या शिक्षक का अर्थ ही होता है “कुछ और आगे देना।” इसलिए हमें अपने शिक्षकों से मिली शिक्षा के साथ उनके मूल्यवान शिक्षण पद्धति और जीवन में मिले अमूल्य पाठों के लिए धन्यवाद देना चाहिए।

आओ शिक्षक-दिवस मनाएं
श्रद्धा-सुमन हम उन्हें चढ़ाएं
ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले
उनसे होता है राष्ट्र-निर्माण
गुरु बिन नहीं मिलता ज्ञान
प्रेषित उनको अतुल सम्मान
आओ शिक्षक-दिवस मनाएं
श्रद्धा-सुमन उन्हें चढ़ाएं