डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
प्रत्येक नागरिक के लिए शिक्षा एक मूलभूत आवश्यकता है।समय की मांग और परिस्थितियों के अनुकूल शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षण विधियों में परिवर्तन आवश्यक माना गया है। भारत में वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है। जिसकी नींव 1835 में लार्ड मैकाले के द्वारा रखी गई तथा इसका उद्देश्य भारत में प्रशासन के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने तथा सरकारी कार्य के लिए भारत के विशिष्ट लोगों को और अंग्रेजी बाबुओं को तैयार करना रहा है।
इस शिक्षण पद्धति द्वारा 100 वर्षों में भी भारत की साक्षरता दर में वृद्धि नहीं हो पाई। और उच्च वर्ग तथा श्रमिक वर्ग में भेदभाव की नीति घर कर गई। शिक्षा प्राप्ति हेतु संस्थानों में गरीबों के साथ शोषण और अत्याचार होने लगे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विश्व गुरु कहलाने वाले भारत में शिक्षा के पायदान पर बढ़ने वाले युवकों को तैयार करने हेतु शिक्षा व्यवस्था को संविधान में वर्णित किया गया। तथा शिक्षा की अनिवार्यता एवं समानता का अधिकार प्राप्ति हेतु संविधान के अनु. 45 में 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था का प्रावधान रखा गया।
उसके बाद डॉ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में 1948 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग स्थापना हुई। 1968 में पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई जो श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रीत्व में हुई। जिसका उद्देश्य सभी को शिक्षा के समान अवसर प्रदान करना था। लेकिन इस शिक्षा नीति में कई कमियां उभर कर सामने आई जिनमें सुधार हेतु शिक्षा के लिए नई योजना नई नीति तैयार की गई।
निम्न वर्ग एवं श्रमिक वर्ग के लिए बढ़ते शोषण को कम करने हेतु तथा दूर दराज एवं दुर्गम स्थान तक शिक्षा की पहुंच को सहज और सुगम बनाने हेतु तथा युवा पीढ़ी को रोजगार युक्त शिक्षा उपलब्ध करवाने हेतु 1986 में दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई जो राजीव गांधी के प्रधानमंत्रीत्व काल में हुई। जिसकी शिक्षा संरचना 10+2+3 पाठ्यक्रम के अनुरूप तैयार की गई। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने भारतीय युवाओं को शिक्षा के प्रति जागरूक तो किया है, लेकिन शैक्षिक बाजार में शिक्षा का भाव केवल आकर्षण का बिंदु और डिग्री बेचने वाली दुकानें बन गया है। जिसके कारण आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन प्रतिभाशाली शिक्षित बेरोजगार युवाओं की भीड़ बढ़ गई है। पैसे वालों के घर नौकरियां दस्तक देने लगी हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे अनैतिक व्यवहार और भेदभाव को कम करने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रतिरूप तैयार किया गया। तथा बढ़ती हुई शिक्षित बेरोजगारी और शिक्षा के बाजारीकरण पर नियंत्रण हेतु 34 वर्ष के बाद 29 जुलाई 2020 को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई है ,जो इसरो के अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रीत्व काल में हुई है। जिसका मुख्य उद्देश्य कुशलता और दक्षता हासिल कराना है। उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा नई सोच और नए पाठ्यक्रम से उपलब्ध कराना है। शिक्षा का मानसिक और शारीरिक बोझ कम करके बच्चे को मनोरंजन के साथ रूचिगत क्षेत्र की ओर अग्रसर करना है। खेल शिक्षण पद्धति द्वारा बच्चों में शिक्षा को स्वादिष्ट एवं रुचिकर बनाना है।
इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की शिक्षा संरचना में बदलाव किया गया है। 10+2+3 शिक्षण पाठ्यक्रम की जगह 5+3+3+4 पाठ्यक्रम किया गया है। एमएचआरडी का नाम परिवर्तित करके शिक्षा मंत्रालय किया गया है। 5 वर्ष से कम वाले बच्चों के लिए बाल वाटिका की व्यवस्था पर बल दिया गया है। कक्षा 5 तक के बच्चों की शिक्षा का माध्यम मातृभाषा/ स्थानीय/ क्षेत्रीय भाषा किया गया है। संगीत, खेल और योग जैसे विषयों को मुख्य पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। शारीरिक और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने हेतु विशेष पहल नई शिक्षा नीति ने की है। शहरी क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्र के सभी दुर्गम इलाकों तक शिक्षा पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। बहुविषयक दृष्टिकोण पर आधारित शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इंजीनियरिंग के छात्र भी एक साथ कला और संगीत जैसे विषयों को भी पढ़ सकेंगे।
कक्षा 1& 2 में गणित और भाषा पर तथा कक्षा 4 & 5 में लेखन पर बल दिया जाना सुनिश्चित किया गया है। कक्षा 9 से विषय चुनने की आजादी दी गई है, जिससे उचित समय पर विषय विशेष में दक्षता हासिल कर बेहतर रोजगार उपलब्ध हो सकें। उच्च शिक्षा में मल्टीपल एंट्री एवं मल्टीपल एग्जिट व्यवस्था को अपनाया गया है। तथा किसी कारणवश बालक बीच में से पढ़ाई छोड़ देता है, तो उसे उतने समय का प्रमाण पत्र/ डिप्लोमा/ डिग्री प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। पढ़ाई में रुचि विकसित करने हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया गया है। पुस्तकों का बोझ कम करने और व्यवहारिक शिक्षा पर विशेष बल देने की बात नई शिक्षा नीति में कही गई है। मानसिक तनाव और बोझ को कम करने हेतु वर्ष में दो बार परीक्षाओं का आयोजन प्रस्ताव पारित हुआ है। उच्च, उत्साही, ऊर्जावान बनेगी नई शिक्षा नीति तथा नई सोच और नए तर्क ,चिंतन और सृजन के साथ व्यक्तित्व विकास में सहायक होगी नई शिक्षा नीति।