झील के किनारे
संग संग आ पीया चल
थक के तेरे कांधे पे
सर रख दूं जी लूं पल
देखो कैसे तक रहा
चांद फलक के कोने से
उसी पल में रोक रहा
मन सारे वेग खोने से
चांदनी लहरों पर तैरती
लुभा रही चांद को
प्रीत बही बांध तोड़ती
अंजान सुन्य दिशा को
लबों के बोल दिल के
तारानों में गुनगुनायें
हवायें भी न सुनें
जो गीत स्पर्श हमारे गायें
-रश्मि किरण
(साहित्य किरण मंच के सौजन्य से)