दुर्गम जीवन पाषाणी जन
नीरव कानन नीड़ तुम्हारा
यहां मधुर फूलों सा सुरभित
सजा हुआ संसार हमारा
आएंगे भी अश्रु अगर तो
सब से उन्हें छिपाउंगी मैं,
प्राण।मलय के हाथों तुम तक
सिर्फ़ प्रेम पहुँचाउंगी मैं।
कष्ट अनोखा मीठा सा है
गीतों में गाया करती हूँ
प्रिये, तुम्हारी तस्वीरों से
सुख-दुख बतियाया करती हूँ।
एक कल्पित तस्वीर बनाकर
साथ तुम्हें रखती हूँ हर क्षण
तुम मेरे मन में तन में हो
तुमसे ऊर्जित मेरा कण-कण।।
मधुर मिलन की सुधियां चुनकर
हर पीड़ा सह जाउंगी मैं
प्राण।मलय के हाथों तुम तक
सिर्फ़ प्रेम पहुँचाउंगी मैं।।
तो क्या? आज स्वप्न ठिठके हैं
खुशियाँ मौन साध कर रहतीं
तो क्या?मन भावों की नैया
निष्ठुर विरही-धार में बहतीं
शीघ्र खिलेंगे अधर पुष्प ये
देखो तुम भी धीरज धरना
आशा-दीप जला रखा है
ह्दय कमल तुम पुलकित रखना।।
कांटों को चुनकर जीवन से
खुशियों से महकाउंगी मैं
प्राण। मलय के हाथों तुम तक
सिर्फ़ प्रेम पहुंँचाउंगी मैं।।
जो उपवन तुमने सींचा था
सजा रही हूँ उसे जतन से
सुमन सुगंधित लहक उठे हैं
भ्रमर पुरस्कृत प्रेम रतन से
आओगे तुम प्रिय पाओगे
घर का हर कोना चहका है
हुई प्रतीक्षा पूर्ण, आगमन
हुआ आपका घर महका है।
अधर मधुर मुस्कान सजाकर
अंक तुम्हें सहलाउंगी मैं
प्राण। मलय के हाथों तुम तक
सिर्फ़ प्रेम पहुँचाउंगी मैं।।
-अंकिता कुलश्रेष्ठ