बहे लहू की देखो धार- स्नेहलता नीर

सीमा पर फिर आज कर दिया शैतानों ने नरंसहार।
लाशों के टुकड़े बिखरे हैं, बहे लहू की देखो धार।

नाम पाक नापाक इरादे, गया हिन्द का जन-जन जान।
होगा क्या अंजाम तनिक भी उसे नहीं है इसका भान।
छल-फ़रेब से बाज न आये, करे पीठ पर जम कर वार।
लाशों के टुकड़े बिखरे हैं, बहे लहू की देखो धार।

सूनी गोद हुईं माँओं की, दूर गया आँखों का नूर।
कितनी ही सजनी की मांगों का भी उजड़ा है सिंदूर।
पहन चूड़ियाँ घर पर बैठें नहीं करेंगे हम स्वीकार।
लाशों के टुकड़े बिखरे हैं, बहे लहू की देखो धार।

अरे हाकिमों जानबूझकर, बने हुए हो क्यों अनजान?
देना दुश्मन को जवाब अब, जल्दी से ले लो संज्ञान।
नम आँखें हैं, ख़ून खौलता, हुए क्रोध से हम अंगार।
लाशों के टुकड़े बिखरे हैं,बहे लहू की देखो धार।

हद से ज्यादा हुई हिमाक़त, नहीं मौन बैठेंगे आज।
ढेर करेंगे हम दुश्मन को, गिरा-गिरा कर उस पर गाज़।
संधि नहीं अब शीश चाहिए, होगा निश्चित अब यलगार।
लाशों के टुकड़े बिखरे हैं, बहे लहू की देखो धार।

भारत माता फूट-फूट कर, रोये बहे नयन से नीर।
मातम पसरा है हर घर में, सही नहीं जाती है पीर।
नहीं सिकंदर तू है दुश्मन, दुनिया तुझे रही दुत्कार।
लाशों के टुकड़े बिखरे हैं, बहे लहू की देखो धार।

जाग गयी है जनता सारी, सत्ताधारी तू भी जाग।
मिलकर हम सब अब कुचलेंगे, पाक मुल्क के सारे नाग।
बना लिया है ख़ुद को हमने, अब संहारक हैं हथियार।
लाशों के टुकड़े बिखरे हैं, बहे लहू की देखो धार।

-स्नेहलता नीर