आखिर कब तक: ममता शर्मा

ख़ामोश हो गई आज,
एक और बेटी की आवाज़
सजा मिली उसे
लेकिन किस बात की!

एक बेटी होने की?
एक लड़की होने की?
या…
खुद को सुरक्षित समझने की?

अरे! गलत थी वो,
जो खुद को सुरक्षित समझ बैठी थी
था नहीं पता उसे,
इस समाज के घटिया लोगों की
घटिया सोच का

हर बार एक नई कहानी आती हैं
और…
फिर कोई बेटी हैवानियत की
शिकार हो जाती है

कभी हैवानियत की सूली चढ़ती है,
तो कभी
दहेज की आग में जलती हैं
क्या कसूर होता है उसका?

यही कि…
वह एक बेटी बनकर जन्म लेती है
शायद इसलिए ये दुनिया,
उसे खामोश कर देती हैं

आखिर कब तक?
कब तक चलेगा ये सिलसिला,
हैवानियत का

कितनी मोमबत्तियाँ जलाई जाएंगी?
कितने धरने दिए जाएंगे?
कितने और कब तक?
आखिर कब तक!

ममता शर्मा
बीए छात्रा
पीजीजीसीजी, सेक्टर-42
चंडीगढ़