अपने घर के आँगन को: रूची शाही

औरत होने की सबसे ज्यादा कोफ्त
उन्हीं औरतों में थी जो मात्र हाउसवाइफ थी
पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी
उनकी विशेष उपलब्धि इतनी ही थी
कि उन्हें मिला था वाइफ होने का तमगा
उनके पास भी थी
bsc और msc की डिग्रियां विथ फर्स्ट क्लास
लेकिन बस फाइल में रखने के लिए

सबसे ज्यादा ताप और उमस
उन्हीं औरतों में थी
जो किचन लगी चिमनियों से
धुआं बनके निकल रही थी
जिनका दर्द गैस पे चढ़े दूध सा
उबल-उबल कर निकलता रहा बाहर

वही औरते जो लिपस्टिक लगा कर
करीने से सज-धज तो लेती थी
पर उनके अधरों का मुस्कान से दूर-दूर तक
कोई रिश्ता न था
वही औरतें जो दक्ष थी हर काम में
पर निकल जाता था मीन मेख उनके
स्वभाव से लेकर उनके हर क्रिया-कलाप में

वो औरतें सुनती थी रोज़ नए-नए ताने
देखतीं थी स्वार्थी रिश्तों का सच
और पीती थी अपमान का घूंट
सहती थी हज़ारों दंश अपने हृदय पर
खाद की तरह थी हो गयीं थी वो औरतें
सड़ने गलने के बाद भी
लहलहाते रखना चाहती थी
अपने घर के आँगन को

रूची शाही