ख़ुशी भी ढूँढू तो: जॉनी अहमद

ख़ुशी भी ढूँढू तो बस दर्द का सामान मिले
मुझे जो लोग मिले मुझसे परेशान मिले

मैं अपने शहर का मुआइना जब करने लगा
मुझे तो हर जगह सोते हुए दरबान मिले

कहीं भी कूच करूँ मिलती हैं ज़िन्दा लाशें
कभी-कभी ही तो ज़िन्दा हमें इंसान मिले

जिन खिलौनों के संग बचपन अपना बीता
आज देखा उन्हें तो सारे वो बे-जान मिले

वो जिनकी आदत थी तंज़ करना औरों पे
दाग-धब्बों से भरे उनके गिरेबान मिले

जब अपनी ज़िन्दग़ी की लाश को देखा मैंने
उसकी गर्दन पे मेरे हाथों के निशान मिले

जॉनी अहमद ‘क़ैस’