यादों के झरोखे से मैंने,
जब अपनी माँ को देखा
सामने आ गई उन लम्हों की,
समस्त रूप रेखा
जब घर में नहीं थे, खाने को निवाले
फसलों पर पड़ गए थे, बिल्कुल पाले
तब तुम कहां से, खाने को लाती थी
खुद भूखे पेट रहकर, मुझको खिलाती थी
फिर भी चेहरे की मुस्कान, कभी न होती लीन
बस अपने काम में रहती, हर पल तल्लीन
अब बचपन की यादें, विकट हो गई
लगा ऐसा जैसे माँ, फिर से प्रकट हो गईं
मैं सुनाने लगा उन्हें, अपने हृदय की बातें
माँ तुम बिन अच्छी नहीं, लगती अब रातें
अपने आंचल में छुपा कर तुमने,
यदि लोरी सुनाई न होती
तो आज हमने जिंदगी की लय,
अपनी धुन में बजाई ना होती
-राम सेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश-209111