तरस रहे हैं मधु के प्याले,
ढूंढ रहा साकी प्याला
लंबी-लंबी हुई कतारें
खुद ही टूट गया ताला
तुम तो सच्चे मतवाले हो
ढूंढ रहे दिन भर हाला
तुम ही सच्चे देशभक्त हो
सड़क बना दी मधुशाला
तरस रहे थे प्याले कब से
किन होठों से लग जाऊँ मैं
किसको अविवेकी मैं बनाऊँ,
किसको पागल कर दूँ मैं
आ जाओ सडकों पर
प्यासे दीवानी तेरी हाला
सड़कें सारी झूम उठे
जीवित हो जाएं मधुशाला
-अनिल कुमार मिश्र
हज़ारीबाग़, झारखंड