दे रहा चुनौती बार-बार, ये थोथी उसकी धमकी है
समझा है कमजोर हमें जो, उसकी ये न समझी है
मुक्ति पाकर अंग्रेजों से, हम संभल नहीं पाए थे
हुआ आक्रमण सन् बांसठ में, अपनी भूमि गंवाए थे
विश्वासघात था किया चीन ने, अब बंदर सी घुड़की है
समझा है कमजोर हमें जो, उसकी ये न समझी है
देख हमें कमजोर पाक ने, किया आक्रमण पैंसठ में
खाकर धोखा संभल गए हम, जागा जन-जन भारत में
मार भगाया पाक को हमने, चली न उसके मन की है
समझा है कमजोर हमें जो, उसकी ये न समझी है
खाकर मात वो गया तिलमिला, हमारा मन मजबूत हुआ
किया आक्रमण फिर से उसने, ईर्ष्या में वह धूर्त हुआ
खोया मुल्क पूरब वाला, चोट बड़ी ये उसकी है
समझा है कमजोर हमें जो, उसकी ये न समझी है
जुर्रत करता चीन अगर अब, सबक उसे मिल जाएगा
पाक लगा यदि साथ में उसके, अस्तित्व हीन हो जाएगा
सेना पीछे हटे नहीं अब, यही कामना सब की है
समझा है कमजोर हमें जो, उसकी ये न समझी है
-राम सेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश