नंदिता तनुजा
सुनों
आज भी
जी चाहता है
तुम्हारी इन्हीं
आँखों पर लिखूँ
जिनको बेहद
बेइंतहा पसंद करती हूँ
अक्सर खामोशी से
टकटकी मेरी ओर
देखती है
उन हसरतों को
एहसासों में पिरो कर
इन्ही आँखों पर लिखूँ
झांक ही लेती हूँ
मैं तेरी थकावट,
तेरी उलझनों को
वो एक मुस्कान
तेरे चेहरे पर खूब
फबती है
जिनमें ख़ामोश
तन्हाइयां…
कुछ देर के लिए
तुमसें बिछड़ जाती है
और तुम
मुझे बेवज़ह की बातों में
उलझा कर मुझे
तुम खुश हो जाते हो
तुम्हारी इन्हीं
आँखों को पढ़
अक्सर तुमसें
उलझ जाती हूँ
बेबाक़ मोहब्बत हो तुम
मेरी आँखों में
बरबस कभी ख़ुशी
कभी बेबसी
कभी ख्वाहिशों का
खूबसूरत एहसास
तुम्हारी इन्हीं आँखों में
पनाह लेती है
कि तेरे इन आँखों से हारने का
मेरा एक अपना अलहदा क़रार है
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