कई रातें तुम बिन हैं, हमने गुजारी
बहुत याद आए, सजन अब तुम्हारी
कहां तुम गए हो, नहीं जानते हैं
आंसू भी रुकना, कहां मानते हैं
दिल में बसी है वो, सूरत तुम्हारी
कई रातें तुम बिन हैं, हमने गुजारी
मचलता है मन ये, मिलने को तुमसे।
खता क्या हुई है, बता दो ये हमसे
भूले नहीं हैं, हम उल्फत तुम्हारी
कई रातें तुम बिन हैं, हमने गुजारी
कब होगा न जाने, चमन ये सुहाना
तुम्हारे बिना जो, हुआ है वीराना
पतझड़ ने मेरी, है बगिया उजारी
कई रातें तुम बिन हैं, हमने गुजारी
रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश