स्त्री के हिस्से, बस दो ही किस्से
आँचल में दूध आँखों में पानी
तूने सबको फूल बांटे, तेरे हिस्से कांटे
जिसको स्वीकारा तुमने, हँसते-हँसते
स्वप्न देखती तू हरियाली के
जिसमें बोये बीज अनेक
आँगन के बंजरपन को
खून से सींचा तुमने, हँसते-हँसते
आँखों में कितने दर्द सजाये
फिर भी तुमने आह ना भरी
राह में कितने आए गड्ढे
पार किया तुमने, हँसते-हँसते
शोहरत दौलत की चाह नहीं
मान सम्मान की तू भूखी प्यासी
अपमान की मोटरी सर पर ढो़ती
जैसे-तैसे दिन गुजारे तुमने, हँसते-हँसते
दुख के बाढ़ की स्थिति में
सुख का बांध बनाती
पक्षपात की सेज पर
सोई तुम, हँसते-हँसते
खुलकर हँस बोल नहीं पाती
जब तू अपनी आवाज उठाती
चरित्र तुम्हारे आड़े आता, मन की सुलगी चिंगारी पर
पानी डाला तुमने, हंसते-हंसते
चाहे कितने हो जाएं तेरे टुकड़े
बिखर जाए तू सरसों के दानों की भांति
स्नेह धागे में संबंध पिरोती
स्वयं टूटकर परिवार जोडा़ तुमने, हँसते-हँसते
अत्याचार झेलती, मुँह से कुछ नहीं कहती
बात कोर्ट कचहरी तक आती
न्याय में देरी होती, कोर्ट कचहरी के
चक्कर लगाया तुमने, हँसते-हँसते
तेरे किस्से में अब दर्द भरे
नये नये अध्याय जुडे़
कोख में तू मारी जाती
औज़ारो की धार सही तुमने, हँसते-हँसते
प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश