संघर्षों की तपिश: प्रार्थना राय

जिम्मेदारियों के बोझ तले
सारे  अरमां  दबा  दिए गये
संघर्षो की तपिश से
ज़िन्दगी धुआँ बनकर उड़ गयी


जो फीकी सी नज़र
आ रही है चेहरे की रानाई 
जिम्मेदारियों की धूप में 
बेतरह झुलस गई


बिखरा हुआ है 
आशियां ख़्वाहिशों की चाह में 
कभी इस ठाँव पर पड़ाव
कभी उस ठाँव की तलाश


अपनों की महफ़िल में 
तन्हा शमां जली आंसू बहा के
लौ बनके रोशनी ना दे सकी खुद को 
दर्द तन्हाई के सारे तक़दीर बन गये


दस्तूर भी दुनियां का
क्या खूब अजीबोगरीब है
यहां रोते हुए को बुज़दिल 
हंसते हुए को दीवाना कहा गया


मजबुरियों के बेशुमार मर्म
जिगर में छुपाएं रक्खें हैं  
लिख दूं कितनी ही दास्तानें
कि पन्ने कम पड़ जाएं


तक़दीर की तहरीर पर 
पासा पलट गया
देखकर हिम्मत हमारी  
वक्त शमशीर बन गया


ज़िम्मेदारियों की गिरफ़्त से
बरी भला कौन हो पाया
अपनी ही मकान में
सभी बन्दी बने हुए

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश