आज फिर दिन कुछ उदास है
नाम उसका जो जिंदगी रख दिया
मिल कर भी मिला अधूरा सा वो
यादें उसकी जगाती मिलन प्यास है
आज फिर दिन कुछ उदास है
शाम सुबह की है गुनगुनाहट वही
रात तपती है पर दुपहरी की तरह
ख्वाब ही अब उसके मेरे खास है
आज फिर दिन कुछ उदास है
मिलना था तो मिले हम कड़ी धूप में
चल न पाये मगर कुछ कदम साथ में
खुश रहो तुम यही मन कीअरदास है
आज फिर दिन कुछ उदास है
दास्ताँ जो लिखी पर पढ़ी ना गई
वक़्त की धार जिसको बहा ले गई
जीऊँ उस पल को जगती ये क्यों आस है
आज फिर दिन कुछ उदास है
-श्वेता राय