ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ की भाषा और व्यवस्था
अभी तलक परितंत्र है!
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चले गए अंग्रेज किंतु
अंग्रेजी का है अनुशासन
बढ़ती गई दाम है सुरसा
महँगा होता गया है राशन
फीताशाही लाल चतुर्दिक
डूबा भषट्राचार प्रशासन
अपने अपने मन के सब है
अपना अपना तंत्र है
ये कैसा गणतंत्र है!
दुःशासन बन गया शासक
चारों ओर लूटे नालायक
स्वास्थ समस्या नयी बिमारी
शिक्षा भी हो गई बेचारी
लूट रहा जो आज देश को
नौतिकता का देता मंत्र है
ये कैसा गणतंत्र है!
हिंदू,मुस्लिम और ईसाई
कहने को है भाई भाई
आपस में सब कटते मरते
जाति धर्म की नित लड़ाई
कैसे किसको निच दिखावै
नित होता षड़यंत्र है
ये कैसा गणतंत्र है!
कहते जैसे है घर की लक्ष्मी
कटती मरती होती जख्मी
होती भ्रूण हत्या है उसकी
कैसा मेरा तंत्र है
ये कैसा गणतंत्र है!
-कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ, बिहार