कोलाहल- हरेश कानानी

बच्चे
नदी के किनारे
बालू का घर बनाते हैं
डूबता सूरज दो चार पल
खिल उठता है
आज की रात काटने के लिए
एक घर तो मिल गया…
🔹 🔸 🔹
लगातार
मन को परेशान करता
यह विशाल कोलाहल
हर एक व्यक्ति चाहे अकेलापन
गार्डन-गांव घूम के खोजें

आज वहां भी
कोलाहल ने अपना स्थान कर लिया है
भले ही सब जगह कोलाहल
हाजिर हो
किंतु मैंने
अकेलापन ढूंढ लिया है
कविता के समुंदर में से

-हरेश कानानी

नाम- हरेश कानानी
पता- गिर गढडा, मुख्य बाजार,
जिला- गिर सोमनाथ (गुजरात)
पिन- 362530
मोबाइल- 743006200
शिक्षा- एमए, बीएड (हिंदी)