Monday, November 17, 2025
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आज भगवान विष्णु योगनिद्रा से जाग पुनः करेंगे सृष्टि का पुनः संचालन

भोपाल,(हि.स.)। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यंत विशेष महत्व माना गया है। हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत रखा जाता है। इस प्रकार एक वर्ष में कुल 24 एकादशी व्रत पड़ते हैं। इन सभी व्रतों में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी, जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।

यह तिथि विशेष रूप से इसलिए पावन मानी जाती है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागकर सृष्टि का पुनः संचालन प्रारंभ करते हैं। इस दिन चातुर्मास की अवधि समाप्त होती है और शुभ व मांगलिक कार्यों का आरंभ दोबारा संभव हो जाता है।

देवउठनी एकादशी तिथि और समय

इस संबंध में पं. भरत शास्‍त्री ने जानकारी दी कि वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आज शनिवार को 1 नवंबर, मनाई जा रही है। यह तिथि सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होकर दो नवंबर को सुबह 07 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। चूंकि उदया तिथि 1 नवंबर को है, इसलिए देवउठनी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। उन्‍होंने बताया कि व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है।

इस बार पारण का समय दो नवंबर को दोपहर एक बजकर 11 मिनट से 03 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। इस अवधि में व्रत का समापन किया जा सकता है। सूर्योदय के बाद भी पारण संभव है; उस दिन सूर्योदय का समय 06 बजकर 34 मिनट रहेगा।

इनका कहना यह भी है कि देवउठनी एकादशी भगवान विष्णु के जागरण का पर्व है, यह मानव जीवन में शुभारंभ और नवऊर्जा का प्रतीक भी है। इस दिन किए गए व्रत, पूजा और दान से व्यक्ति को असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। यह एकादशी हर भक्त के लिए आध्यात्मिक उत्थान और शुभ फल प्रदान करने वाली मानी जाती रही है।

देवउठनी एकादशी पूजा और व्रत विधि

देवउठनी एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के चरणों में तुलसी दल अर्पित करना इस दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। पूजा के लिए विष्णु भगवान की शालिग्राम रूप में आराधना कर दीप, धूप, पुष्प, फल, तुलसी और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है।

व्रत के नियमों को लेकर पं. ब्रजेशचंद्र दुबे का कहना है कि व्रत के दिन सात्त्विक भोजन का ही सेवन करें। तामसिक भोजन, लहसुन, प्याज और चावल का सेवन वर्जित है। व्रत करने वाले को काले या गहरे रंग के वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। घर और पूजा स्थल की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि माता लक्ष्मी का वास स्वच्छता में होता है। व्रत का पारण द्वादशी तिथि को नियत समय में करें। पारण के बाद अन्न, वस्त्र या धन का दान करना अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसा करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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