बोसनियन पॉट के निर्देशक पावो मैरिनकोविच ने कहा- भारतीय संस्कृति में ही फिल्मों के प्रति प्रेम निहित है

बोसनियन पॉट के निर्देशक पावो मैरिनकोविच ने गोवा में आयोजित भारतीय अंतराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के 54वें संस्करण में आज मीडिया कर्मियों और फिल्म प्रेमियों के साथ बातचीत में कहा कि भारतीय संस्कृति में ही फिल्मों के प्रति प्रेम निहित है। क्रोएशियाई और जर्मन भाषा में बनी फिल्म बोसनियन पॉट को इस महोत्सव में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा अनुभाग के अंतर्गत प्रदर्शित किया गया था।

फिल्म आप्रवासन, पहचान और जीवन में परिवर्तन लाने के लिए कला में समाहित सामर्थ्य के विषयों के बारे में उल्लेख करती है। यह कड़े आव्रजन नियमों के कारण ऑस्ट्रिया से निर्वासन का सामना करने वाले बोस्निया के एक लेखक फारुक सेगो की कहानी को दिखाती है। वहां रहने के लिए उसे यह साबित करना आवश्यक है कि उसने ऑस्ट्रियाई समाज पर सांस्कृतिक प्रभाव डाला है। फारुक के लिए इससे बचने का अंतिम मौका एक ऑफ-थिएटर समूह में ही है, जो अपनी युवावस्था में उसके द्वारा लिखे गए नाटक का मंचन करने को तैयार है। इसी क्रम में थिएटर में अनिच्छा से लौटते हुए फारुक की यात्रा एक साहसिक यात्रा में बदल जाती है, जो उसे कलात्मक रूप से चुनौती देती है और गहन आत्म-खोज के लिए प्रेरणा देती है।

मैरिनकोविच अपने क्षेत्र में माहिर हैं और उन्होंने एक थिएटर लेखक के रूप में शुरुआत की थी। इसके बाद वे फिल्मों के लिए निर्देशक व फिल्म लेखक बन गए। उन्होंने ट्रेसेटा/ट्रेसेट  ए स्टोरी ऑफ एन आइलैंड फिल्म की कहानी को लिखा था और उसे सह-निर्देशित भी किया। इस फिल्म ने 6 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तथा 2 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते और 30 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में इस फिल्म प्रदर्शित किया गया। उन्होंने वर्ष 2013 में एक चेक-क्रोएशियाई डॉक्यूमेंट्री फिल्म ऑक्यूपेशन द 27 पिक्चर तैयार की थी। मैरिनकोविच 2021 से ‘पुला फिल्म फेस्टिवल’ का संचालन भी कर रहे हैं।

मैरिनकोविच ने अपनी फिल्म बोस्नियान पॉट के बारे में कहा कि यह यात्रा आसान नहीं थी। यह तीन देशों- क्रोएशिया, ऑस्ट्रिया और बोस्निया के अभिनेताओं के साथ एक सहयोगात्मक कार्य था। उन्होंने बताया कि यह एक क्रोएशियाई के रूप में उनके खुद के अनुभवों से प्रेरित थे, जो ऑस्ट्रिया चले गए और नायक के रूप में इस तरह की समस्याओं का सामना किया। उन्होंने आगे कहा, “मेरी प्रेरणा वहीं से आती है, जहां मैं हूं। हम जो स्क्रीन पर देखते हैं, वह राजनीतिक संघर्ष है, लेकिन इसके अलावा नायक फारुक के आंतरिक झगड़े भी हैं- दूसरे देश में एक बाहरी व्यक्ति होने के कारण, लोग उसके काम को महत्व नहीं देते हैं।” उन्होंने आगे बताया कि बोस्निया अभी भी इन समस्याओं का सामना कर रहा है क्योंकि, यह अभी भी यूरोपीय संघ से बाहर है और कैसे यह विषय अभी भी यूरोप में राजनीतिक रूप से प्रासंगिक हैं।

इसके अलावा उन्होंने फिल्म के नाम का महत्व भी समझाया, जो बोस्निया में पारंपरिक समुदाय-व्यंजन का एक रूपक है, जिसे बोस्नियान पॉट कहा जाता है, जहां हर एक सदस्य बंधुता और एकता के प्रतीक के रूप में खुद का एक हिस्सा जोड़ता है। यह फिल्म पहचान, समुदाय और स्वीकृति के विषयों के माध्यम से उसी लोकाचार को दिखाती है।