आशियाना बदलकर क्या,
मुझे तुम भूल पाओगे?
अंधेरी रात में वो चांदनी,
क्या तुम भूल पाओगे?
सुहानी बागों के सुनहरे पल,
क्या तुम भूल पाओगे?
वो लताओं की हरियाली,
क्या तुम भूल पाओगे?
फूलों के सामने खाई वो कसमें,
क्या तुम भूल पाओगे?
मेरे बिन रात की बेचैनी को,
क्या तुम भूल पाओगे?
सावन के बारिशों की बूंदें,
क्या तुम भूल पाओगे?
ठंडी हवाओं की खुशबू को,
क्या तुम भूल पाओगे?
मेरे संग की हुई सफर को,
क्या तुम भूल पाओगे?
तेरे जुल्फों पर लिखी शायरी,
क्या तुम भूल पाओगे?
-जयलाल कलेत
रायगढ़, छत्तीसगढ़,