पच्चीकारियों के दरकते अक्स: थर्ड जेंडर

समीक्षा: डॉ. आशा सिंह सिकरवार
उपन्यास: पच्चीकारियों के दरकते अक्स
लेखिका: डॉ. रीता दास राम

डॉ. रीता दास राम का बहुआयामी व्यक्तित्व है। उनकी कविताएं, कहानियां, संस्मरण, लघुकथा, साक्षात्कार, आलेख प्रकाशित होते रहे हैं। साहित्यिक यात्रा में उन्हें अनेक सम्मान एवं पुरस्कार मिले हैं। हाल ही में उनके उपन्यास ‘पच्चीकारियों के दरकते अक्स’ को कादम्बरी सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

समकालीन हिंदी साहित्य में आज जिन विषयों को विमर्श में शामिल किया गया है वे हैं- स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श, किन्नर विमर्श आदि। डॉ. रीता दास के उपन्यास “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” में किन्नर विमर्श को केंद्र में रखा गया है। वर्तमान समाज में किन्नर को हिजड़ा, खुसरो, अली छक्का आदि नाम से पुकारा जाता है।

इनके चार वर्ग हैं- बचुरा, नीलिमा, मनसा, हंसा। बचुरा वर्ग में वास्तविक किन्नर आते हैं, वे न स्त्री होते हैं न पुरुष। नीलिमा वर्ग में वे हिजड़े आते हैं जो परिस्थितियों वश बन जाते हैं। मनसा वर्ग के हिजड़े जो स्वयं को मानसिक रूप से हिजड़ा समझते हैं। हंसा वर्ग के हिजड़े किसी यौन अक्षमता की वजह से स्वयं को हिजड़ा समझने लगते हैं। आज किन्नर समाज विश्व के हर क्षेत्र में समाहित है। 

तृतीय लिंगी विमर्श को किन्नर विमर्श के रूप में सम्बोधित किया जाता है स्मरणीय है कि ‘किन्नर’ शब्द यहां ऐसे हाशियकृत समुदाय का बोध होता है,जो स्त्री और पुरुष से इतर अथवा तृतीय जेंडर के अन्तर्गत परिणित है।

हिंदी साहित्य में आरम्भिक काल में निराला का कुली भाट, शिवप्रसाद सिंह का बहाव वृत्ति, बिदां महाराज वृंदावन लाल वर्मा का नीलकंठ (एकांकी), पांडेय बेचैन शर्मा का लौंडेबाज आदि विभिन्न विधाओं में किन्नर का चरित्र चित्रण मिलता है।

आज किन्नर समाज की समस्या पर अनेक उपन्यास लिखे गए हैं उनमें यमदीप नीरजा माधव, मैं भी औरत हूं अनुसुइया त्यागी, किन्नर कथा, मैं पायल महेंद्र भीष्म, तीसरी ताली प्रदीप सौरभ, गुलाम मंडी निर्मल भुराड़िया, प्रति संसार मनोज रूपड़ा, पोस्ट बाक्स नं 203 नाला सोपारा चित्रा मुद्गल का आदि। 

समकालीन उपन्यासों में किन्नर समाज की विभिन्न कठिनाइयों एवं उनके संघर्ष को संवेदनात्मक स्तर पर प्रमुखता से उठाया गया है। रीता दास का उपन्यास ‘पच्चीकारियों के दरकते अक्स’ में किन्नर (थर्ड जेंडर) विस्थापन की समस्या को केंद्र में रखा गया है।

किन्नर के जीवन में जन्म से संघर्ष आरंभ हो जाता है और मृत्यु तक जारी रहता है। मां-बाप अपनी ही संतान को स्वीकार करने की मानसिकता में नहीं हैं। ऐसा क्यों? यह आज चिंतन का विषय है। बच्चे में शारीरिक बदलाव होने के कारण अनेक परिवार में बच्चा किन्नर है मालूम होते ही, उसे स्वीकार ने की स्थिति में कोई नहीं होता है। किसी किन्नर बस्ती में छोड़ देते हैं शिक्षा, रोजगार एवं चिकित्सा से वंचित रह जाता है।

नीरजा माधव अपने उपन्यास में लिखती हैं- “माता किसी स्कूल में आज तक किसी हिजड़े को पढ़ते, लिखते देखा है? किसी कुर्सी पर हिजड़ा बैठा है, मास्टरी में, पुलिस में, कलेक्ट्री में, किसी में भी, अरे इसकी दुनिया यही है माता जी कोई आगे नहीं आयेगा कि हिजड़ों को पढ़ाओ, लिखाओ, नौकरी दो, जैसे कुछ जाति के लिए सरकार कर रही है। (यमदीप)

आज किन्नर समाज त्रासदी में जी रहा है सामाजिक मानसिकता के वजह से वह किन्नर है। ये उसका दोष नहीं है। वह मनुष्य ही है स्त्री की कोख से पैदा हुआ है। समाज को बहिष्कार नहीं करना चाहिए। एक मनुष्य की तरह उनके साथ व्यवहार करना चाहिए।

विस्थापन संघर्ष वर्तमान किन्नर समाज की भीषण समस्या है। इस संदर्भ में चित्रा मुद्गल को उल्लेख किए बिना नहीं रहा जा सकता है। “कभी कभी मैं अजीब सी अंधेरी बंद चमगादड़ों में अंटी सुरंग में स्वयं घुटता हुआ पाता हूं बाहर निकलने को छटपटाता मैं मनुष्य तो हूं ही।” (पोस्ट बॉक्स नम्बर 203 नाला सोपारा) 

‘पच्चीकारियों के दरकते अक्स’ उपन्यास में लेखिका ने थर्ड जेंडर (किन्नर विमर्श) को उपन्यास की मुख्य कथावस्तु बनाया है। उपन्यासकार ने किन्नर बच्चे के जन्म के साथ 

सामाजिक तिरस्कार, अवहेलना और बहिष्कृत समाज का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है।

किन्नर विमर्श के साथ ही लिव इन रिलेशनशिप विमर्श, समलैंगिक विमर्श को केंद्र में रखकर अनेक सामाजिक समस्याओं की तरफ पाठक का ध्यान खींचने की कोशिश की है। आज तीनों विमर्श हिंदी साहित्य में ज्वलंत मुद्दे का रूप ले चुके हैं। साहित्य को समाज का दर्पण इसलिए कहा गया है जो समाज का यथार्थ है, वही साहित्य में चित्रित होता है। समाज तेजी से बदल रहा है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ पश्चिम से आ रहा है उसे हम ग्रहण तो कर रहे हैं, उसके परिणाम कितने सकारात्मक हैं? और कितने नुकसानदायक?

इस उपन्यास में इन्हीं जीवन मूल्यों की खोज हुई है। लेखिका ने कथा वस्तु का चयन आज की महानगरीय जीवन शैली से चयन किया है। जिस समाज में हम रहते हैं वह कैसा है? वहां व्यक्ति के जीवन मूल्य कितने टिक पाते हैं? समाज का परंपरागत सामाजिक ढांचा टूट रहा है, उसमें व्यक्ति के जिंदा रहने के लिए कौन सी नई व्यवस्था बनी है, जिसमें वह एक व्यक्ति के रूप में स्वतंत्र रह सके, सुखी महसूस कर सके। 

किन्नर विमर्श की हिन्दी साहित्य में क्या आवश्यकता पड़ गई? लिव इन रिलेशनशिप और समलैंगिकता जैसे संबंध क्यों जन्म ले रहे हैं? इन सवालों के जबाव हमें समाज के भीतर से ही मिलेंगे। आज शिक्षा जैसे- जैसे बढ़ रही है व्यक्ति का विकास भी बढ़ रहा है। पर क्या समाज का विकास हो रहा है? व्यक्ति के ऊपर समाज का दबाव अधिक है। नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी में द्वंद्व की समस्या है। उपन्यास का उद्देश्य है समाज का वास्तविक चेहरा सामने लाना। दोहरी मानसिकता, समाज के दोहरे मापदंड। एक दूसरे को जीने न देने की होड़ सी प्रतीत होती है।

बाहर से आधुनिक दिखने वाला समाज भीतर से खोखला और दंभी है। झूठी मान प्रतिष्ठा की खातिर अपने बच्चों तक का त्याग कर देता है।

हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श, समलैंगिक विमर्श और लिव इन रिलेशनशिप विमर्श की विस्तृत चर्चा हुई है। जिन लेखिकाओं ने अपनी लेखनी चलाई है उनमें कृष्णा सोबती, प्रभा खेतान, मैत्रेयी पुष्पा, इस्मत चुगताई, नासिरा शर्मा, अनामिका, मुदुला गर्ग, उषा प्रियंवदा, गीतांजलि श्री, सबसे पहले सुरेन्द्र वर्मा, नीरजा, चित्रा मुदगल आदि। परिणाम स्वरूप गंभीर चिंतन सामने आया है। 

पच्चीकारियों के दरकते अक्स उपन्यास में लेखिका ने घर परिवार के बीच से कथा वस्तु का चयन किया है। रोजमर्रा के जीवन में घटने वाली छोटी छोटी घटनाएं परिवार के सुख दुःख का कारण तब बनती हैं जब परिवार में एकता न हो, सभी एक दूसरे का सहयोग करें और एक दूसरे से भावनात्मक जुड़े रहें तो बड़ी से बड़ी समस्या भी सुलझ जाती है। मुख्य कथा अनवरत विकास करती चलती है। साथ ही छोटी-छोटी प्रासंगिक कथाएं भी चलती है जिससे उपन्यास का विकास होता रहता है। उपन्यास में मुख्य कथा रीना के परिवार की है जिसमें उसके जीवन के साथ ही परिवार के सभी सदस्यों की कथा भी क्रमशः सामने आती है। 

रीना उपन्यास की मुख्य पात्र की भूमिका में सामने आती है। जो अपने जीवन के प्रति सजग, सशक्त किरदार है। रीना पीएचडी की छात्रा है। वह अपने परिवार से भी संवेदनशीलता के स्तर पर गहराई से जुड़ी है, हालांकि बेटियां परिवार में जितनी उपेक्षित होती हैं उतनी ही यहां रीना का पात्र भी है।

उपन्यास का आरंभ बहुत रोचक घटना सेे होता है अपनी बहन के घर जाना, जहां बहन का पति हंसी ठिठोली करते हुए एकांत पाकर रीना को बाहों में भर लेता है। रीना रिश्ते में ईमानदार और पढ़ी लिखी होने के कारण सजग भी। वह अपने जीजा द्वारा की गई हंसी ठिठोली का विरोध करती है। पंरपरागत भारतीय समाज में चले आ रहे जीजा साली के रिश्ते में प्रश्न चिह्न लगा देती है। स्त्री इस रिश्ते में सुरक्षा महसूस कर सके। ऐसी सामाजिक व्यवस्था होनी चाहिए। साली आधी घरवाली होती है। ऐसी कुंठित, गलतसोच  से मुक्ति पानी होगी। पुरुषों को इस मानसिकता से बाहर आना होगा और आज का युवक वास्तव में शिक्षित हुआ है ये बदलाव दर्ज कराना होगा। पत्नी विरोध नहीं करती,न साली विरोध करती हैं और ये मजाकिया रिश्ता एक दिन घर के साथ साथ कई जिंदगियां भी बर्बाद कर देता है। पति पत्नी के बीच ईमानदारी का रिश्ता होना जरूरी है। यहां रीना की बड़ी बहन सतर्क हो जाती है अपने पति की नीयत जान लेने के बाद रीना को अपने पिता के साथ घर भेज देती है और रीना के विवाह के लिए रिश्ता भी देखा जाता है। दूसरी ओर रीना पूरी तरह निर्दोष होते हुए भी परिवार की निगाह में आ जाती है। उसके विवाह के लिए रिश्ता देखने लगते हैं जबकि वह अपनी पढ़ाई करना चाहती है। हमारे समाज में लड़की की इच्छा का कोई महत्व नहीं बस घरवाले चाहते हैं इसलिए विवाह हो जाता है या करना पड़ता है। लड़कियां चुपचाप विवाह कर लेती हैं।

लेखिका सामाजिक कुरीति एवं पितृसत्तात्मक मानसिकता पर प्रहार करती हैं। रीना करियर पसंद,अपने जीवन के प्रति सजग लड़की है। उसका सारा ध्यान अपनी पढ़ाई, अपने विकास में लगा रहता है। मुख्य कथा के साथ मुख्य गौण कथा के रूप में उसके भाई की कथा भी साथ चलती है। रीना का भाई रजत पढ़ा लिखा नौकरीपेशा एक सुव्यवस्थित युवक है, जो अपनी बहनों के साथ खड़ा रहता है। उसे जिस लड़की से प्रेम है उसका नाम गीता है उससे विवाह करना चाहता है। लेखिका समाज का दोहरा चेहरा सामने लाने का प्रयास करती हैं। लड़की के घरवाले इस प्रेम विवाह के खिलाफ हैं। एक तरफ हम चाहते हैं कि विवाह के बाद हमारा लड़का लड़की सुखी रहे। दोनों के बीच प्रेम रहे परंतु प्रेम विवाह स्वीकार्य नहीं करते हैं।

विवाह के नाम पर जाति, धर्म आड़े आ जाता है। जब लड़का लड़की ने प्रेम किया तब जाति देखकर नहीं किया, बल्कि एक दूसरे के स्वभाव, रूचियां, अच्छाइयां देखकर किया। फिर साथ रहने का संकल्प किया। प्रेम विवाह के विरोध के कारण गीता और रजत ने जो मानसिक पीड़ा भोगी एक दूसरे से जुदा हो कर लेखिका ने बहुत ही सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। आपसी संवाद भी मार्मिक बन पड़े। तमाम विरोध के बाद विवाह तो हुआ पर फिर भी एक तरफा रहा। गीता के माता-पिता सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते गीता का त्याग कर देते हैं, गीता के मन में एक टीस रह जाती है।

एक और प्रासंगिक कथा के रूप में रीना की सहपाठी अलका की कथा सामने आती है। काॅलेज के एक लड़के के साथ उसका प्रेम में धोखा खाने पर  वह आत्म हत्या कर लेती है। इस  गौण कथा में लेखिका एक और समस्या पर बात करती है। 

जब कोई लड़की आत्म हत्या करती है तब समाज उसे कैसे देखता है? उसके साथ सहानुभूति नहीं दिखाता बल्कि मृत्यु के बाद अवेहलना करता है। आजकल कालेज में पढ़ती हर लड़की को सतर्क रहने की जरूरत है, झूठे आशिक भरे पड़े हैं जो एक साथ कई लड़कियों के साथ संबंध बनाते हैं पर विवाह नहीं करते।

लड़कियां प्रेम में शारीरिक संबंध बना लेती हैं और गर्भवती होने पर उन्हें छोड़ दिया जाता है, न समाज स्वीकार करता है न कोई युवक विवाह करता है। अलका भी इसी छल का शिकार हुई और वह भय में तथा मानसिक हताशा में आत्महत्या कर लेती है। अलका की मां खुद गर्भवती को इज्जत पर दाग़ समझती है।

ये कैसी सामाजिक विडम्बना है कि प्रेम भी अस्वीकार और एक स्त्री का गर्भवती होना भी।

काॅलेज में बच्चे भटक जाते हैं उस उम्र में बच्चों को संभालना होता है, माता पिता अगर बच्चों के साथ रहें तो बच्चे बड़ी से बड़ी समस्या का सामना कर सकते हैं। अलका अपने माता-पिता से कुछ नहीं कह पाई क्योंकि उसे पता था हमारा समाज एक अविवाहित गर्भवती लड़की को कैसे देखता है? समय के साथ जीवन में भी बदलाव दर्ज हुआ है। शारीरिक संबंध अकेले स्त्री तो नहीं करती पुरुष भी करता है वह बेदाग रहता है और स्त्री के चरित्र पर दाग़ लग जाता है। लेखिका ने प्रयास किया है इन प्रासंगिक कथा द्वारा समाज का दोगला चेहरा दिखा सके। समाज की कुंठाओं और अविकसित मानसिकता के कारण स्त्री अपनी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर पायी है न मानवीय अधिकार।

अलका का पात्र कमजोर पात्र के रूप में सामने आया है। वहीं गीता का पात्र सशक्त बन पड़ा है। वह प्रेम में विद्रोह करती है और प्रेम विवाह भी करती है। लेखिका ने रीना के घर का उदाहरण प्रस्तुत किया है जहां माता पिता भाई बहन आपस में कुछ नहीं छिपाते और खुलकर गलत का विरोध करते हैं तथा नये युग की नयी संभावनाओं का स्वागत।

रजत का पात्र बेहद संवेदनशील, दृढ़ संकल्पि सुलझा हुआ युवक है। रजत कहीं भी कमजोर नहीं पड़ता है। अपनी बहनों के साथ हर फैसले में साथ देता है। वह अपनी प्रेमिका गीता के साथ भी ईमानदारी से रिश्ता निभाता है और उसे प्राप्त करने के लिए समाज के विरोध का सामना करता है, लड़ता है अपना प्रेम पाने के लिए संघर्ष करता है। विवाह के बाद गीता के साथ एक सफल और संवेदनशील प्रेमी और समझदार पति की भूमिका में सफल चरित्र है।

गीता के पिता एक परंपरागत रूढ़ीवादी व्यक्ति के रूप में निरूपित हुए हैं। जिन्हें अपनी बेटी की खुशी से ज्यादा समाज,जात, बिरादरी क्या कहेगी? इसकी फिक्र है। वे अपनी बेटी को प्रेम करने के जुर्म में दरवाजे में बंद कर देते हैं।

हम देखते हैं समाज में कि ऐसे प्रसंगों में बेटियों की बात तक नहीं सुनी जाती। बेटियों को विवाह का निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। दूसरी तरफ रजत का परिवार रजत के विवाह के लिए हर सम्भव प्रयासरत है। कहने का अर्थ है कि एक ही समय काल में दो परिवारों में अलग-अलग  मानसिकता देखने मिलती है। व्यक्ति अपने सीमित दायरे से संकुचित मानसिकता से जल्दी मुक्त नहीं हो पाता है इसके पीछे उसका परिवेश जिम्मेदार होता है।

एक और पात्र महत्वपूर्ण है राम का। रीना जब पढ़ाई के लिए स्वीडन जाती है तब वहां रीना की मुलाकात राम से होती है। स्वीडन में रीना की हम उम्र और भी लड़कियां वहां मिलती हैं मिशिता, सुभद्रा, तेजश्री आदि।

राम और रीना एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं,साथ में पढ़ना,साथ में काम करना। राम का आकर्षण रीना की तरफ अधिक है। उससे विवाह करने के लिए उतावला हो जाता है, पर रीना उसे समझना चाहती है। दोनों साथ में लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं। स्वीडन के परिवेश में दोनों रम जाते हैं। 

एक दिन रीना पर पहाड़ टूट पड़ता है। भाई के बच्चे के रूप में किन्नर ने जन्म लिया है। एक साथ सबकी जिंदगियां हिल जाती हैं। हम लड़की या लड़के की तरह किन्नर को नहीं अपनाते आखिर क्यों? हमारी समाजिक व्यवस्था कैसी है? जिसमें एक बच्चे का लिंग तय करेगा उसे कहां रहना है? बच्चे को लिंग के आधार पर त्यागना एक मानव समाज की क्रूरता है ये बताने में लेखिका सफल हुई है।

किन्नर क्यों पैदा हुआ इसके कारण भी दर्ज हैं? रीता दास लिखती हैं- “क्रोमोजम्स के डिसऑर्डर से थर्ड जेंडर भ्रूण बनने की शुरुआत होती है जिसे साइंस मेटाबॉलिक डिसऑर्डर congenital adrenal hyperplasia कहता है। क्रोमोजम्स डिसऑर्डर होने की कोई निश्चित वजह नहीं होती। जेनेटिक डिसऑर्डर से सेक्स क्रोमोजम्स मिसिंग होते हैं, जैसे कि x y y y क्रोमोजम्स के साथ मिलने से शिशु अस्पष्ट जननांग के साथ पैदा होता है।”

रीता दास ने थर्ड जेंडर के स्थापन का महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है। समाज में उभयलिंगी के लिए एक जागरूकता लाने का प्रयास किया है। जन्म से ही यदि बच्चे को अपनाया जाए तो इन्हें देखने का समाज का नजरिया भी बदलेगा। इस वर्ग की बहुत सारी समस्याएं हल हो सकती हैं।

एक जगह पर लेखिका ने रीना के पात्र द्वारा कहा है- “सभी पैरेंट्स को ऐसा ही आगे बढ़ कर डिसीजन लेना चाहिए। आखिर बच्चे हमारी वजह से दुनिया में आते हैं। उन्हें संभालने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। वरना बच्चे पैदा ही ना करे।”

उपन्यास में लेखिका ने नयी पहल करने के लिए समाज को प्रेरित किया है। जो वर्ग समाज में पिछड़ा है। अपने मानवीय अधिकार से वंचित हैं। कष्ट में हैं उन्हें पीड़ा से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने की आवश्यकता है। समाज घर से बनता है इसलिए सबसे पहले हमें अपनी सोच को मानवीय बनाना होगा। रीता दास अपने उपन्यास में किन्नर संघर्ष की नहीं बल्कि थर्ड जेंडर के स्थापन की बात की है जो इनकी मूल भूत समस्या है। समाज के डर से बच्चे को छोड़ कर हम तो बच जाते हैं किन्तु थर्ड जेंडर को जीवन भर एक अभिश्राप की तरह जीवन जीना पड़ता है। दूसरी बात समाज का दृष्टिकोण भी बदलेगा वे भी मनुष्य हैं उनके साथ मानवीय व्यवहार करें। शारीरिक खामियों के कारण एक मनुष्य के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। 

उपन्यास में लिव-इन रिलेशनशिप स्त्री पुरुष संबंध भी सामने आये हैं वहां भी पुरुष मानसिकता के कारण स्त्री को भावनात्मक क्षति पहुंचती है। एक पढ़ा लिखा विदेश में रहने वाला युवक लिव-इन रिलेशनशिप तो स्वीकारता पर समाज के सामने किन्नर दृष्टि कोण को लेकर लड़ नहीं पाता।पल भर में शारीरिक और भावनात्मक रिश्ते खत्म हो जाते हैं। इससे यह पता चलता है कि हम विदेश में रहें फिर भी मानसिकता बदल नहीं पाये हैं । लेखिका ने बताया है कि परिवेश बदलने से मानसिकता नहीं बदलती। स्वीडन जाकर भी राम का कमजोर व्यक्तित्व देखा जा सकता है। उसे ये भय भी सताता है कि रजत की तरह बहन को भी किन्नर बच्चा जन्म न लें,  जबकि कभी ऐसा नहीं हुआ है कि परिवार में एक स्त्री को किन्नर बच्चे को जन्म दिया हो तो बाकी सभी स्त्री को भी हुआ हो। लेखिका ने सामाजिक धारणा बदलने की कोशिश की है। वहीं रीना स्त्री होकर भी समाज के सामने ख़तरे उठाती है। लेखिका देश-काल वातावरण का चित्रण परिवेश के अनुकूल करती हैं।

कहने का अर्थ है कि स्त्री को हर जगह में पुरुष अकेला छोड़ देता है उसे अपनी भावनाओं के साथ समझौता करना पड़ता है। जिसके परिणामस्वरूप रीना ने समलैंगिकता एक विकल्प के रूप में चुना है। कहीं न कहीं ये गहरी निराशा की स्थिति है ये मान लेना कि मुझे कोई दूसरा पुरुष नहीं मिलेगा किन्नर बच्चे के कारण। समाज ऐसी स्थिति पैदा कर रहा है स्त्री के पास एक ही विकल्प है।

मैं यह समझती हूं कि स्त्री यदि पुरुष से प्रेम करती है और धोखा खाती है फिर भी वह समलैंगिकता को विकल्प के रूप में नहीं चुनेगी। समलैंगिकता दो तरफा भावनात्मक रिश्ता है दो स्त्रियों का बराबरी का रिश्ता। पश्चिम में स्त्रीवादी विमर्श एक मुख्य स्वर यह भी रहा था कि स्त्री और पुरुष को भी समलैंगिकता में पूरा सुख भोगने का अधिकार है। धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति पूरी दुनिया में स्वीकृति प्राप्त करती चली गई। प्रति वर्ष विश्व में जगहों जगहों पर समलैंगिक के जो जुलूस निकलते हैं वे इसी जीवन जीवन यथार्थ की प्रतीति देते हैं भारतीय समाज में, भारतीय न्यायपालिका ने इस पर अपनी स्वीकृति दे दी है।

थर्ड जेंडर  पर बात करने का लेखिका का उद्देश्य यही है।