चाहत है
तुम्हारी आँखों के दर्पण में
ख़ुद का अक्स देखने की
चाहत है
तुम्हारे माथे पर अपने
नाम कि सिंदूर लगाने की
चाहत है
तुम्हारा हाथ थामे
समुंदर के किनारे टहलने की
चाहत है
तुम्हारे साथ-साथ
कोई गीत गुनगुनाने की
चाहत है
तुम्हारे हाथ के मेहंदी में
छुपे अपने नाम को ढूंढने की
चाहत है
तुम्हें अपने हाथों से
पानीपुरी खिलाने की
चाहत है
तुम्हारे साथ पहली
बरसात में भीग जाने की
चाहत है
तुम्हें अपने हाथ से बनी
सुबह की चाय पिलाने की
चाहत है
तुम्हारे साथ अपने जिंदगी के
हर एक पल को गुजारने की
चाहत है
तुम्हारे साथ थियेटर में बैठे
कोई रोमांटिक मूवी देखने की
चाहत है
तुम पर दुनिया भर
की खुशियां लूटाने की
चाहत है
ठंड में एक ही
कम्बल से लिपट जाने की
चाहत है
तुम्हारे साथ एक
अलग दुनिया बसाने की
-शिवम मिश्रा ‘गोविंद’
मुंबई, महाराष्ट्र