तिलक नगर के मेट्रो स्टेशन पर
साँझ को अक्सर दिखता है
एक दीन हीन पति-पत्नी का जोड़ा
पति प्रज्ञाचक्षु है
पत्नी ही अनमोल आँखें हैं उसकी
जिसके आसरे
दुनिया को जानने -समझने की
कुछ-कुछ कोशिश करता है वह
पुरुष बड़ी मोहक बाँसुरी बजाता है
चलते हुए राहगीर
थम जाते हैं एकाएक
सुरीली धुन सुनकर
बाँसुरी वादक के हुनर का जादू
सिर चढ़कर बोलता है
पर उस गरीब आदमी के पास
अपने जादू में झूमते हुए लोगों को
देखने वाली आँखें नहीं हैं
और दुनिया वालों के पास
वे कान नहीं हैं जो सुन सके
बाँसुरी के पीछे से आती
दर्द में भीगी हुई आवाज़
-जसवीर त्यागी