हायकु: वंदना सहाय

वंदना सहाय

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भूखा क्या लिखे
चाँद को जब देखे
वो रोटी दिखे

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पलकों तले
कभी सपने होते
तो कभी आँसू

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खुद न खाती
मुनिया पहुँचाती
लंच के डिब्बे

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वसीयत में
वो छोड़ गया कर्ज
बच्चों के लिए

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डैनों में चूजे
मुर्गी ने जब भरे
माँ याद आयी

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कैसे ये शब्द!
कभी हमें जोड़ते
कभी तोड़ते

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आम आदमी
बेरंग जिंदगी का
बेरंग किस्सा

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कभी काट दे
ये जुबान की कैंची
नाजुक रिश्ते

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नहीं भरते
जिस्मों के मरहम
मन के घाव

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सूख रहा है
नदियों के साथ ही
पानी आँखों का