हे मनमोहन कृष्ण मुरारी,
मेरी कुटिया में आ जाना।
दधि माखन श्रीखंड मलाई,
बैठ चाव से गिरधर खाना।।
आज काल विकराल रूप धर,
तांडव करता इस धरती पर।
मेल-मिलाप रुद्ध मानवता,
दुबकी घर में, काँपें थर-थर।
जीव जगत के कष्ट मिटाकर,
कृपा-दृष्टि केशव बरसाना।।
छुपा धर्म का दिनकर माधव,
पाप-तिमिर ने पाँव पसारे।
सद्भावों की सूखी गंगा,
शुचिता के लाचार किनारे।
हे! मुरलीधर भगवद्गीता,
का आकर संदेश सुनाना।।
दुष्ट दुशासन के चंगुल में,
कृष्णा चीख रही बेचारी।
तार-तार हैं मर्यादाएँ,
शील-हरण करते व्यभिचारी।
हे! ब्रजवल्लभ संकट-मोचन,
हर अनुजा की लाज बचाना।।
व्याकुल कर्णपटल साँवरिया,
बाँसुरिया की तान सुनाओ।
सकल सृष्टि को हे! बनवारी,
बंशीवट, ब्रजधाम बनाओ।
मन के मधुवन में बिहार कर,
हे प्राणेश्वर रास रचाना।।
स्नेहलता ‘नीर’