बरस बाद सावन बन, साजन आए हैं सखि पास हमारे।
सरसाया मन का वृंदावन, पाकर प्रेम सुधा-रसधारे।।
उत्सव मना रहीं हैं साँसें, धड़कन बजा रही शहनाई।
पलक पाँवड़े झूम-झूम कर, प्रियतम की करते पहुनाई।
रोम-रोम रोमांचित नाचे, ज्यों सुरसरि के मिले किनारे।।
मौन अधर मुखरित मन करता, प्रीति-पगी रसभीनी बातें।
भूल गए हम शूल-सेज पर, काटीं अनगिन रो-रो रातें।
बाहों के झूले में झूलें, जगमग चमकें भाग्य-सितारे।।
हृदय-कुंज में कोयल कुहके, डाल-डाल पुष्पित आह्लादित।
पाकर छुवन चंदनी तन है, रजनीगंधा-साँस सुवासित।
शीतल है मन की अँगनाई, बुझे विरह के सब अंगारे।।
सुधियों को मिल गया लक्ष्य निज, सपने ऊँची भरें उड़ानें।
जीवन नैया-सजन खिवैया, मन के भावों को पहचानें।
खुशी-खुशी अपने सँग लाए, अनगिन जादूभरे पिटारे।।
स्नेहलता नीर