सूर्य देव तुमको नमन, कृपादृष्टिमय धूप।
उर्वरता, जीवन, सृजन, हरीतिमा नव रूप।।
सूर्य देव की कृपा से, पृथ्वी, चंद्र प्रसन्न।
देते शुभ आशीष में, कंद-मूल, जल अन्न।।
सूर्य उत्तरायण हुए, बढ़ी ऊर्जा – क्रांति।
दूर रश्मियों ने किया, भीष्म शीत की भ्रांति।।
पर्व मकर संक्रांति का, लगा बजाने तूर्य।
विजय प्राप्त कर शीत पर, हर्षित गर्वित सूर्य।।
नमन भास्कर देव को, स्वच्छ करो आकाश।
सकल प्रकृति को दीजिए, ऊष्मा और प्रकाश।।
ज्योतिष, प्रकृति, सुकाल के, सूर्य देव आधार।
मकर राशि में आ गये, अपने नयन उघार।।
सूरज रथ के अश्व सी, नवल रश्मियाँ सात।
करतीं ज्योतित जगत को, देकर शुभ्र प्रभात।।
रातें छोटी. दिन बड़े, खुले ऊर्जा स्रोत।
सकारात्मक भाव से. सूरज ओतप्रोत।।
गौरीशंकर वैश्य विनम्र
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