कर लेती हूं ‘म्याऊं म्याऊं’
जब दिखती है मिनी मासी
थोड़ा सा ‘भौ भौ’ भी कर लेती हूँ
नज़र बचा कर लोगों से
जब डॉगी अंकल नज़र मिलाते हैं
रास्ते पर टहलते हुए कभी
गौरैया आती है जब पानी पीने
पूछ लेती हूँ उससे इशारों में
बाजरी या चावल की दावत उड़ाई है
या ठूंसा है आज भी बिना हड्डी का नॉनवेज
या सिर्फ पानी पर दिन गुजारा है तुमने
या निम्बोली तोड़ खाई है पकी हुई
खिड़की के बाहर जब कभी आ बैठते हैं
दो श्याम बदन के पीले हार पहने जोड़े
झांक लेती हूँ उनकी आँखों में
उनके सदा साथ साथ रहने की वजह
उनकी चोंच पर लगे पहरे
उनकी पुतलियों पर सफेद मोती
उनकी गुपचुप सी बातें
और वो जो छोटी छोटी
रंग बिरंगी चिड़िया आती हैं न!
नीली की बहन पीली और हरी की बहन भूरी
जो मेरे बगीचे के पौधे में खोजती रहती हैं
एक बड़े से पत्ते वाला पौधा
और चुन कर लाती है कहीं से धागे रेशम से
फिर सी कर किनारे पत्ते की
बनाती है अपना आशियाना
पूछ लेती हूँ उससे कभी कभी
किस नम्बर की सुई से
काढ़ि है तुमने ये रनिंग स्टिच
कैसे सीखा है जोड़ना
इन तीखी हरी किनारों को
कहाँ से लाती हो रुई के सुफेद फाहे
कैसे आया तुम्हे यूँ नरम बिस्तर बनाना
कभी कभी मध्याह्न के बाद
सूरज से मिलाती हूँ नज़र
देखें कौन हारेगा कि
बुझ जाने की शर्त भी लगाती हूँ
फिर हार कर मूंद लेती हूँ आँखें
और बंद आँखें देखती है
सूरज के भीतर की अकुलाहट
उसके मन में बसे चित्र
उनके जलने की पीड़ा
उसकी छाती पर रेंगते सर्प
उसका विष से भरा शरीर
उसका जल कर मुस्कुराता चेहरा
यूँ बचपन के खेल खेलते हुए
खुद को बड़ा समझने की ज़िद से
पा लेती हूँ थोड़ा सा आराम
जीवन में होना चाहिए कभी कभी
ऐसा एक ‘अल्पविराम’
आज और कल के बीच
जीवन की रचना में पूर्णविराम का क्या काम?
जब लग जायेगा पूर्णविराम
तब कभी न लगेगा अल्पविराम
नीतू कुमावत ‘नटखट’