घूँघट से ढँकी कोई स्त्री
चल रही है
एक पुरुष के पीछे-पीछे
सुनहरे स्वप्न बुनती हुई
अपनी मंजिल की ओर
स्त्री के कदमों की गति बता रही है
कि वह अभी नयी-नवेली है
एक आदिम सहज जिज्ञासा
ले रही है जन्म
घूँघट में ढँका मुखड़ा कैसा होगा?
कल्पना के कबूतर
अनुमान के अश्व
जिज्ञासा की जुबान
हो रहे हैं सक्रिय
यह कैसी अजीब आदिम अभिलाषा है?
अज्ञात को देखने की
जब तक रहेगी यह पृथ्वी
तब तक बची रहेगी शेष
घूँघट में ढँके मुखड़े को
देखने की जिज्ञासा
-जसवीर त्यागी